tag:blogger.com,1999:blog-91633500416964490252024-02-20T09:11:12.280-08:00हिंदू मीडिया ग्रुप भारतहिंदू मीडिया ग्रुप भारत का उदेश्य हिन्दुओ के धार्मिक सांस्कृतिक व सामाजिक बातो को दुनिया में पहुचाना हैhindu tigerhttp://www.blogger.com/profile/06085116912025834954noreply@blogger.comBlogger29125tag:blogger.com,1999:blog-9163350041696449025.post-65889256213465664252009-03-23T13:18:00.000-07:002009-03-23T13:24:43.394-07:00वेदना के अनसुने स्वर<span class="Apple-style-span" style=" line-height: 25px; font-family:Mangal;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"> पिछले कुछ महीनों में पाकिस्तान से छह हजार हिंदू जान और इज्जत बचाकर भारत आए हैं। इन परिवारों की आप बीती रोंगटे खड़ी करती है। वे सरकारी नौकरियों में जा नहीं सकते, घर की इज्जत भी हर वक्त खतरे में रहती है। दहशत की जब अति हो गई, सांस लेना दूभर हो गया तब उन्होंने सदियों से चला आ रहा घर और कामकाज छोड़कर भारत आने का निर्णय क्यों किया? यह बात यहां का कोई राजनीतिक दल समझ सकेगा? पाकिस्तानी हिंदुओं की जो पीढ़ी भारत आई है वह भारत से उतनी ही अजनबी है जितनी वह बांग्लादेश या इंग्लैंड से होगी। वे भारत इसलिए आते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि यहां उन्हें सुरक्षा मिलेगी। इस पृथ्वी पर कहींभी कभी भी यदि हिंदुओं को कोई कष्ट होता है तो वे भारत माता की गोद मंें आ दुबकते हैं-चाहे उनका पासपोर्ट किसी भी देश का क्यों न हो। पर उन चैनलों और मीडिया के अन्य साधनों के लिए पाकिस्तानी हिंदुओं की व्यथा कथा महत्वहीन ही रही जिन्होंने मंगलूर में एक पब की घटना को दुनिया भर में हिंदुओं का चेहरा विकृत दिखाने के लिए तूफान की तरह फैला दिया था। भारत का कौन-सा राजनीतिक दल ऐसा है जो हिंदू व्यथा पर आक्रोश व्यक्त करने या हिंदू रक्षा के लिए वोट बैंक और चुनावी जीत-हार के पेंच भूलकर खड़ा हो? हिंदू हित के बारे में असंदिग्ध निष्ठा और असमझौतावादी दृढ़ता से समाज को खड़ा करने में स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद, श्री अरविंद, डा. हेडगेवार ही नहीं, गांधीजी और डा. लोहिया का भी अप्रतिम योगदान है। 23 मार्च को डा. राममनोहर लोहिया की जन्म शताब्दी शुरू हो रही है। आज की राजनीति में विभिन्न दलों में ऐसे प्रमुख नेता हैं जो स्वयं को लोहिया जी का विचार अनुगामी कहने में संकोच नहीं करते। इनमें मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव जैसे आज के लोकप्रिय नेता भी शामिल हैं। यहां मैं 12 अप्रैल, 1964 को डा. राममनोहर लोहिया तथा तत्कालीन जनसंघ के नेता पं. दीनदयाल उपाध्याय द्वारा संयुक्त रूप से जारी बयान का एक अंश दे रहा हूं। दो भिन्न विचारों के दलों के नेताओं का यह संयुक्त बयान आज के युग में एक अचंभा ही माना जाएगा। उस बयान में कहा गया था-पूर्वी पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर हुए दंगों ने दो लाख से अधिक हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों को भारत आने पर मजबूर किया है। पूर्वी बंगाल में हुई घटनाओं से स्वाभाविक रूप से भारतीयों में उत्तेजना है। हमारा यह दृढ़ मत है कि पाकिस्तान के हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के जीवन और संपत्ति की सुरक्षा की गारंटी देना भारत सरकार की जिम्मेदारी है। इस मामले में निरा कानूनी दृष्टिकोण लेते हुए यह कहना कि पाकिस्तान में रहने वाले हिंदू पाकिस्तानी नागरिक हैं, खतरनाक होगा। जहां तक भारतीय मुसलमानों का संबंध है, हमारा यह दृढ़ मत है कि अन्य सभी नागरिकों के समान सभी परिस्थितियों में उनके जीवन और संपत्ति की रक्षा की जानी चाहिए। कोई भी घटना या तर्क इस सच्चाई से समझौता करने को सही नहींठहरा सकते। एक राज्य जो अपने नगारिकों को जीने के अधिकार की गारंटी नहींदे सकता और ऐसे नागरिक जो अपने पड़ोसियों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकते, बर्बर ही कहलाएंगे। हमारा यह मानना है कि दो भिन्न देशों के रूप में पाकिस्तान का अस्तित्व एक कृत्रिम स्थिति है। दोनों सरकारों के संबंध में मनमुटाव असंतुलित दृष्टिकोण और टुकड़ों में बात करने की प्रवृत्ति का परिणाम है। दोनों सरकारों के बीच चलने वाला संवाद टुकड़ों में न होकर निष्पक्षता से होना चाहिए। खुले दिल से होने वाली ऐसी बातचीत से ही विभिन्न समस्याओं का समाधान निकल सकता है, सद्भावना पैदा की जा सकती है और किसी प्रकार के भारत-पाकिस्तान महासंघ बनाने की दिशा में शुरुआत की जा सकती है। इन दोनों महानायकों के अनुयायी क्या आज पैंतालिस साल बाद साथ मिलकर यह बयान दोबारा जारी कर सकेंगे? पिछले दिनों पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ भारत आए थे। एक साहसी पत्रकार प्रेरणा कौल ने मुशर्रफ से पूछा कि मैं कश्मीरी पंडित हूं, मेरा घर श्रीनगर में है, लेकिन मैं अपने घर नहीं जा सकती, होटल में रुकना पड़ता है, वहां जाना नामुमकिन ंहै। आप बता सकेंगे कि क्या हम वहां लौट सकेंगे? मुशर्रफ एक क्षण को सन्नाटे में आ गए। पे्ररणा कौल के सवाल का जवाब भारत को भी देना होगा। वे लोग जो चुनाव लड़ रहे हैं वे जब भारत में ही हिंदुओं की रक्षा नहीं कर पाते और बेघर कर दिए गए हिंदुओं को अपने ही देश में अपने घर नहीं लौटा पा रहे हैं तो उनसे पाकिस्तान या बांग्लादेश में हिंदुओं को बचाने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? भारत के राजनेता एक ऐसी आत्मदैन्यता से ग्रस्त हैं कि यदि प्राचीन सांस्कृतिक नगर अनंतनाग को इस्लामाबाद करने का प्रस्ताव कश्मीर विधानसभा में आए या कंधमाल में हिंदुत्वनिष्ठ कार्यकर्ता प्रभात पाणिग्रह की हत्या कर दी जाए तो खामोशी छाई रहती है, लेकिन एक वरुण गांधी के बयान पर उन्हें अस्पृश्य बनाने की कोशिश होती है। क्यों? जिन्होंने वरुण गांधी का विरोध किया, क्या उन्होंने एक बार भी पीलीभीत में हिंदुओं की दीन-हीन स्थिति का सर्वेक्षण करने की जरूरत समझी? पीलीभीत से कासरगौड़ (केरल) तक ऐसी ही स्थिति है। मैं पिछले दिनों महाराष्ट्र में लातूर और जालना के प्रवास पर गया था। वहां के स्थानीय समाचार पत्र इस प्रकार के समाचारों से भरे हुए थे कि स्थानीय मुस्लिम युवकों को लव जिहाद के लिए पैसे दिए जा रहे हैं ताकि वे कालेज जाने वाली हिंदू लड़कियों को प्रेम-पाश में फंसाकर मतांतरित कर शादी कर लें। इसकी छानबीन कौन करेगा? इस हिंदू बहुल देश की राजनीति में सब दलों में हिंदू होने के बावजूद हिंदू वेदना के प्रति इतनी उपेक्षा क्यों दिखती है? (लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)</span></span>hindu tigerhttp://www.blogger.com/profile/06085116912025834954noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9163350041696449025.post-29466216761651189202009-03-12T07:21:00.001-07:002009-03-12T07:26:46.283-07:00हिन्दू मिटाओ - हिन्दू भगाओ अभियान1985 में अलकायदा की स्थापना ने बाद बाकी सारी दुनिया की तरह भारत में भी मुस्लिम जिहादियों को नये सिरे से संगठित होने का मौका मिला । जिसका परिणाम कश्मीर घाटी में 1989-90 में मुस्लिम जिहादियों द्वारा हिन्दू मिटाओ- हिन्दू भगाओ अभियान के रूप में देखने को मिला । जिसके परिणामस्वरूप आज सारी कश्मीर घाटी को हिन्दुविहीन कर दिया गया । जिस तरह ये सैकुलर गिरोह हिन्दुओं पर किय गए हर हमले के बाद राम मन्दिर का तर्क देकर इसे बदले में की गई कार्यवाही बताकर सही ठहराने का दुससाहस करता है। अगर इनके इस तर्क को माना जाए तब तो जिस तरह मुस्लिम जिहादियों ने मुस्लिमबहुल कश्मीर घाटी से सब हिन्दुओं का सफाया कर दिया उसी तरह बदले में हिन्दुओं को सारे हिन्दुबहुल भारत से मुसलमानों का सफाया कर देना चाहिये । जिस तरह कश्मीर में वहां की मुस्लिम पुलिस ,प्रैस, नेताओं ने मुसलमानों के हिन्दुमिटाओ-हिन्दुभगाओ अभियान को सफल बनाने में हर तरह का सहयोग दिया तो इनके इस तर्क के अनुसार सब हिन्दू पुलिस, प्रैस व मीडिया व नेताओं को हिन्दुओं के इस मुस्लिम मिटाओ मुस्लिम भगाओ अभियान में सहयोग करना चाहिए । जिस तरह हुरियत कान्फ्रैंस ने सारे देश व संसार के मुसलमानों का समर्थन आर्थिक सहयोग इन मुसलमानों के हिन्दू मिटाओ हिन्दू-भगाओ अभियान के लिए जुटाया वैसा ही समर्थन व आर्थिक सहयोग सब हिन्दू संगठनों को मिलकर हिन्दुओं के इस अभियान को सफल बनाने के लिए जुटाना चाहिए ।<br />अतः हम तो यही कहेंगे कि अगर हिन्दू इस तरह की कोई प्रतिक्रिया नहीं कर रहे हैं तो उसे उनकी कमजोरी मानकर उन्हें साम्प्रदादिक व आतंकवादी कहकर दुनिया में फजूल में बदनाम न किया जाए क्योंकि जिस दिन हिन्दुओं ने इस बदनामी से तंग आकर इसे यथार्थ में बदलने का मन बना लिया उस दिन न हिन्दुओं पर हमला करने वाले बचेंगे न हमलों का समर्थन करने वाले बचेंगे । हिन्दू मुस्लिम जिहादियों के हर हमले को सहन कर रहे हैं अपने हिन्दू भाईयों को अपने सामने कत्ल होता देख रहे हैं। फिर भी इन्सानित व मानवता की रक्षा की खातिर खामोश हैं पुलिस प्रशासन सरकार से न्याय की उम्मीद लगाये बैठे हैं । दूध पीते बच्चों तक को इन जिहादियों ने मार्च 1998 में मुस्लिम जिहादियों द्वारा कत्ल किया गया दूध पीता बच्चा आज 21बीं शताब्दी में हिन्दुबहुल भारत में हलाल कर दिया। सब तमाशा देखते रहे हिन्दू को ही बदनाम करते रहे और हिन्दू फिर भी खामोश रहा । अल्पसंख्यकवाद के नाम पर ईसाईयों व मुसलमानों के बच्चों को विशेषाधिकार देकर हिन्दुओं को दोयम दर्जे का नागरिक बनाकर रख दिया फिर हिन्दू खामोश रहा । सेना में हिन्दुओं की अधिक संख्या पर सवाल उठा दिया गया फिर भी हिन्दू खामोश रहा । हिन्दुओं के लगभग हर सन्त को बदनाम करने का दुस्साहस किया फिर भी हिन्दू खामोश रहा । अन्त में हिन्दू धर्म के आधार स्तम्भ भगवान राम के अस्तित्व को नकार दिया फिर भी हिन्दू खामोश रहा । ये सब कुछ सहने के बाद हिन्दू को दुनिया भर में आतंकवादी कहकर बदनाम कर दिया हिन्दू फिर भी खामोश रहा । लेकिन अब हिन्दू खामोश नहीं बैठने वाला । अब उसने इन हमलों से खुद निपटने का मन बना लिया है अब वो समझ गया है कि ये वो ही मुस्लिम जिहादी हमला है जिसका सामना हिन्दुओं ने सैंकड़ों वर्षों तक किया है। इस आतंकवादी हमले का सामना हमें कृष्ण देवराय, रानी दुर्गावती, बन्दा सिंह बहादुर जैसे महान योद्धाओं की तरह ही करना पड़ेगा । इसके लिए हमें वो सब मार्ग अपनाने होंगे जो मुस्लिम आतंकवादी हिन्दुओं को मारने के लिए अपना रहे हैं । हमें महाराणा प्रताप व छत्रपति शिवाजी जैसे वीर योद्धाओं के उस सबक को फिर से याद करना होगा जिसके अनुसार मुस्लिम आतंकवाद को खत्म करने के लिए मुस्लिम जिहादियों को ढूंढ-ढूंढ कर उनके घर में घुस कर मारना होगा । हमें वीर योद्धा पृथ्वीराज राज द्वारा की गई गलती से मिले सबक को याद रखकर उस पर अमल करना होगा । अगर वीर योद्धा पृथ्वी राज कब्जे में आये उस मुस्लिम जिहादी राक्षस मुहमद गौरी को न छोड़ता तो हिन्दुओं को इतना नुकसान न उठाना पड़ता। हिन्दुओं को गीता के इस उपदेश पर हर वक्त अमल करने की जरूरत है । धर्मों रक्षति रक्षितः<br />हम हर बार इन मुस्लिम जिहादी राक्षसों के प्रति दया दिखाने की बेवकूफी करते हैं और नुकसान उठाते हैं। क्या आपको याद है कि जिस मुस्लिम जिहादी ने धन तेरस के दिन दिल्ली में बम्ब विस्फोट कर सैंकड़ों हिन्दुओं की जान ली । विस्फोट वाले स्थान पर बच्चों की सैंडलों के ढेर लग गए। उस स्थान पर चारों तरफ मानव के मांस के जलने की दुर्गंध फैल गई । वो मुस्लिम जिहादी एक बार पुलिस ने पकड़ कर सरकार के हवाले कर दिया था । उसे सैकुलर जिहाद समर्थक सरकार ने पढ़ालिखा निर्दोष बताकर छोड़ दिया था ।<br />एक बात तो साफ और स्पष्ट है कि सारा जिहाद समर्थक सेकुलर गिरोह अपनी इतनी बेवकुफीयों की वजह से इतने हिन्दुओं का कत्ल करवाने के बावजूद कुछ सीखने को तैयार नहीं है। न मुस्लिम आतंकवादियों की हर हरकत को जायज ठहराने वाले जावेद अखत्र, फारूकी, अब्दुल रहमान अंतुले जैसे आतंकवादियों को अलग थलग करने की किसी भी कोशिश का साथ देने को तैयार हैं । तो फिर कानून से इस समस्या का समाधान कैसे निकल सकता है क्यों कि अगर ये गिरोह सरकार में है तो खुद मुस्लिम जिहादियों के विरूद्ध कार्यवाही करेगा नहीं और अगर करना भी चाहेगा तो इसके मुस्लिम जिहादियों के समर्थक सहयोगी करने नहीं देंगे । अगर ये जिहाद व धर्मांतरण समर्थक गठवन्धन विपक्ष में है तो सरकार को आतंकवादियों के विरूद्ध कठोर व निर्णायक कार्यवाही करने नहीं देगा । आतंकवादियों के विरूद्ध कार्यवाही को मुसलमानों के विरूद्ध कार्यवाही करार देकर अपल्पसंख्यकों पर हमला बताकर मुसलमानों को भड़कायेगा । सारी दुनिया में हिन्दुओं व भारत को मुस्लिम विरोधी बताकर बदनाम करेगा ।<br /><br />अब इन सब हालात में सिर्फ तीन समाधान के रास्ते बचते हैं।<br /><br />पहला सब शान्तिप्रिय देशभक्त लोग अपने छोटे-छोटे निजी स्वार्थ भुलाकर मिलकर सिर्फ एक बार इस तरह वोट करें कि आने वाले चुनावों में भाजपा को दो तिहाई बहुमत देकर इस आतंकवाद समर्थक गिरोह के सब सहयोगियों के उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त करवायें ताकि ये देशद्रोही सेकुलर गिरोह विपक्ष में बैठने के भी काबिल न रहे और अगर रहे तो इतनी कम संख्या में कि ये सरकार द्वारा किये जा रहे किसी भी आतंकवाद विरोधी काम में टांग न अड़ा सकें । अगर इसके बाद भी भाजपा इस समस्या का हल न कर पाये तो भाजपा अपने आप सेना को बुलाकर अपने राष्ट्रवादी होने का प्रमाण देकर देश की बागडोर सेना के हाथ में सौंप दे ।<br /><br />अगर भाजपा न खुद आतंकवादियों के विरूध निर्णायक कार्यवाही करे न सता सेना को सौंपे तो जनता उसका भी आने वाले चुनाव में सेकुलर गिरोह की तरह सफाया कर किसी ज्यादा देशभक्त विकल्प को सता में लाए।<br /><br />दूसरा सेना शासन अपने आप अपने हाथ में लेकर सब जिहादियों व उनके समर्थकों का सफाया अपने तरीके से करे । सब देशभक्त संगठन खुले दिल से सेना की इस कार्यवाही का सहयोग करें ।<br /><br />तीसरा अगर इन में से कुछ भी न हो पाय तो फिर हर देशभक्त हिन्दू -परिवार गुरू तेगबहादुर जी के परिवार के मार्ग पर चलकर उन की शिक्षाओं को अमल में लाते हुए धर्म की रक्षा की खातिर लामबंद हो जाए और कसम उठाये कि जब तक इन मुस्लिम जिहादी राक्षसों,वांमपंथी आतंकवादियों व धर्मांतरण के ठेकेदारों का इस अखण्ड भारत से नामोनिशान न मिट जाए तब तक हम चैन से नहीं बैठेंगे चाहे इसके लिए कितने भी बलिदान क्यों न देने पड़ें ।<br /><br />हम ये दावे के साथ कह सकते हैं कि पहला और दूसरा समाधान सब हिन्दुओं बोले तो हिन्दू सिख ईसाई बौध जैन मुसलमान सब शान्तिप्रय देशभक्त देशवासियों के हित में है । इसलिए सब देशभक्त लोगों को मिलकर इस हल को कामयाब बनाने का अडिग निर्णय कर समस्या का समाधान निकाल लेना चाहिये ।<br /><br />पर देश की परस्थितियों व इस देशद्रोही सेकुलर गिरोह की फूट डालो और राज करो के षड्यन्त्रों को देखते हुए इस समस्या का लोकतान्त्रिक हल असम्भव ही दिखता है क्योंकि आज मुसलमान इस सेकुलर गिरोह के दुशप्रचार से प्रभावित होकर हर हाल में उस दल को एक साथ वोट डालता है जो उसे सबसे ज्यादा हिन्दुविरोधी-देशविरोधी दिखता है । ईसाई ईसाईयत को आगे बढ़ाने वालों व धर्मांतरण की पैरवी करने वालों को वोट डालता है ।<br /><br />बस एक हिन्दू है जिसका एक बढ़ा हिस्सा आज भी मुसलमानों व ईसाईयों द्वारा अपनाइ जा रही हिन्दुविरोधी वोट डालो नीति को नहीं समझ पा रहा है और अपने खून के प्यासे इस सेकुलर गिरोह को वोट डालकर अपने बच्चों का भविष्य खुद तवाह कर रहा है। हिन्दू इस देशविरोधी-हिन्दुविरोधी नीति को धर्मनिर्पेक्षता मानकर हिन्दूविरोधियों को वोट डालकर अपनी बरबादी को खुद अपने नजदीक बुला रहा है । हिन्दू की स्थिति विलकुल उस कबूतर की तरह है जो बिल्ली को अपनी तरफ आता देखकर आंखे बंद कर यह मानने लग पड़ता है कि खतरा टल गया और बिल्ली बड़े आराम से उसका सिकार करने में सफल हो जाती है ।<br /><br />सारे आखण्ड भारत में चुन-चुन कर बहाया गया व बहाया जा रहा हिन्दुओं का खून चीख-चीख कर कह रहा है कि इन मुस्लिम जिहादियों व उनके सहयोगी इस देशबिरोधी सैकुलर गिरोह का हर हमला सुनियोजित ढंग से हिन्दुओं को मार-काट कर, उनकी सभ्यता संस्कृति को तबाह कर अपने देश भारत से हिन्दुओं का नमो-निसान मिटाकर सारे देश को मुस्लिम जिहादी राक्षसों व धर्मांतरण के ठेकेदारों के हवाले करने के लिए किया जा रहा है । परन्तु हिन्दू की बन्द आंख है कि खुलती ही नहीं ।<br /><br />अगर सिर्फ एक बार हिन्दू इन धर्मनिर्पेक्षता के चोले में छुपे हिन्दूविरोधियों की असलियत को समझ जाए तो अपने आप इन सब गद्दारों का नामोनिशान मिट जाएगा पर दिल्ली के चुनाव परिणाम ने दिखा दिया कि हिन्दुओं का बढ़ा वर्ग अभी भी इन देशद्रोहियों की असलियत को नहीं पहचान पाया है ।उसने फिर उस दल को वोट कर दिया जिसने पोटा हटाकर व अफजल को फांसी न देकर मुस्लिम जिहादियों का हौसला बढ़ाकर शहीदों के बलिदान का अपमान कर हजारों हिन्दुओं को कत्ल करवा दिया जबकि सब मुसलमानों ने मिलकर मुस्लिम आतंकवादियों का समर्थन करने वाले सेकुलर गिरोह को बोट डाला ।<br /><br />अतः सैनिक शासन ही इन दो में से ज्यादा सम्भव दिखता है वो भी कम से कम 20-25 वर्ष तक । अगर सेना अपने आप को देश की सीमांओं की रक्षा तक सीमित रखती है तो हिन्दूक्राँति ही सारी समस्या का एकमात्र सरल हल है जिसकी देश को नितांत आवश्यकता है। हिन्दूक्राँति तभी सम्भव है जब सब देशभक्त हिन्दू संगठन एक साथ आकर, आतंकवादियों को समाप्त करने की प्रक्रिया से सबन्धित छोटे-मोटे मतभेद भुलाकर, अपने-अपने अहम भुलाकर गद्दार मिटाओ अभियान चलाकर इन देशद्रोहियों को मिटाकर भारत को इस कोढ़ से मुक्त करवायें। इस अभियान में जो भी साथ आता है उसे साथ लेकर, जो बिरोध या हमला करता है उसे मिटाकर आगे बढ़ने की जरूरत है ।<br /><br />क्योंकि समाधान तो तभी सम्भव है जब हिन्दुओं का खून बहाने वालों को उनके सही मुकाम पर पहुँचाया जाए व सदियों से इतने जुल्म सहने वाले हजारों वर्षों तक अपने हिन्दू राष्ट्र की रक्षा के लिए खून बहाने वाले हिन्दुओं के जख्मों पर मरहम लगाने के लिए उन्हें उनके सपनों का राम राज्य बोले तो हिन्दूराष्ट्र भारत सदियों से काबिज होकर बैठे आक्राँताओं से मुक्त मिले । हिन्दुओं को क्यों अपने शत्रु और मित्र की समझ नहीं हो पा रही ? क्यों हिन्दू आतमघाती रास्ते पर आगे बढ़ रहा है ? क्यों उसको समझ नहीं आता कि जयचन्द की इस हिन्दुविरोधी मुस्लिमपरस्त सोच ने हिन्दुओं को अपूर्णीय क्षति पहुँचाई है ? जिहादी आतंकवाद व धर्मांतरण समर्थक ये सैकुलर सोच हिन्दुओं की कातिल है । मुस्लिम जिहादियों द्वारा 24 मार्च 2003 को हिन्दुओं का नरसंहार वैसे भी ये आत्मघाती सोच सैंकड़ों वर्षों की गुलामी का परिणाम है अब हमें अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए इस आत्मघाती गुलामी की सोच से बाहर निकलना है। न केवल खुद को बचाना है बल्कि इस देशविरोधी सैकुलर गिरोह के सहयोग से मुस्लिम जिहादियों के हाथों कत्ल हो रहे अपने हिन्दू भाईयों भी को बचाना है। इनकी रक्षा में ही हमारी रक्षा है क्योंकि जिस तरह आज बो मारे जा रहे हैं अगर आज हम संगठित होकर एक साथ मिलकर इन मुस्लिम जिहादियों से न टकराये तो बो दिन दूर नहीं जब उसी तरह हम भी इन राक्षसों द्वारा इन धर्मनिर्पेक्षताबादी जयचन्दों के सहयोग से मारे जायेंगे । अगर अब भी आपको लगता है कि हिन्दुओं का कत्ल नहीं हो रहा है, ये हमले मुस्लिम जिहादियों द्वारा हिन्दुओं पर नहीं किये जा रहे, हिन्दुओं का नमो-निसान मिटाने के लिए मुसलमानों द्वारा हिन्दू-मिटाओ हिन्दू भगाओ अभियान नहीं चलाया जा रहा । क्योंकि ये देशद्रोही जिहाद समर्थक सैकुलर गिरोह आपको इस सच्चाई से दूर रखने के लिए हिन्दुविरोधी मीडिया का सहारा लेकर यही तो प्रचारित करवाता है ।<br /><br />तो जरा ये कश्मीर घाटी से हिन्दुओं को मार काट कर भगाने के लिए चलाए गय सफल अभियान के बाद मुसलमानों द्वारा जम्मू के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में चलाए जा रहे हिन्दू मिटाओ-हिन्दू भगाओ अभियान के दौरान हलाल किये जा रहे हिन्दुओं का विबरण देखो और खुद सोचो कि किस तरह मुस्लिम जिहादियों ने हिन्दुओं का कत्लेआम इन धर्मनिर्पेक्षतावादियों का सरंक्षण पाकर बेरोक टोक किया जो आज भी जारी है !<br />अलकायदा की स्थापना 1985 में होने के बाद कश्मीर में अल्लाह टायगरस नामक जिहादी संगठन ने 1986 आते-आते वहां की मुस्लिमपरस्त जिहादी आतंकवाद समर्थक सैकुलर सरकार के रहमोकर्म व सहयोग से अपने आपको इतना ताकतवर बना लिया कि ये हिन्दुओं के विरूद्ध खुलेआम जहर उगलने लगा । जिसके परिणांस्वरूप हिन्दुओं पर पहला हमला 1986 मे अन्नतनाग में हुआ । दिसम्बर 1989 में जोगिन्दर नाथ जी का नाम अन्य तीन अध्यापकों के साथ नोटिस बोर्ड पर चिपकाकर उसे घाटी छोड़ने की धमकी दी गई । ये तीनों राधाकृष्ण स्कूल मे पढ़ाते थे । धमकाने का सिलसिला तब तक जारी रहा जब तक जून 1989 में जोगिन्दर जी वहां से भाग नहीं गए । हमें यहां पर यह ध्यान में रखना होगा कि हिन्दु मिटाओ हिन्दु भगाओ अभियान चलाने से पहले 1984-86 के वीच में पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के मुस्लिम जिहादीयों को भारतीय कश्मीर में वसाया गया और घाटी में जनसंख्या संतुलन मुस्लिम जिहादियों के पक्ष में वनाकर हिन्दुओं पर हमले शुरू करवाय गए। ये सब पाकिस्तान के इसारे पर इस सेकुलर गिरोह की सरकारों ने किया। 2 फरवरी 1990 को सतीश टिक्कु जी जोकि एक समाजिक कार्यकर्ता व आम लोगों का नेता था, को जिहादियों ने शहीद कर दिया । 23 फरवरी को अशोक जी, जो कृषि विभाग में कर्मचारी थे, की टाँगो में गोली मारकर उन्हें घंटों तड़पाकर बाद में सिर में गोली मारकर उनका कत्ल कर दिया गया । एक सपताह बाद इन मुस्लिम जिहादियों द्वारा नवीन सपरु का कत्ल कर दिया गया । 27 फरवरी को तेज किशन को इन जिहादियों ने घर से उठा लिया और तरह-तरह की यातनांयें देने के बाद उसका कत्ल कर उसे बड़गाम में पेड़ पर लटका दिया । 19 मार्च को इखवान-अल-मुसलमीन नामक संगठन के जिहादियों ने बी के गंजु जी जो टैलीकाम इंजनियर का काम करते थे, को घर में घुस कर पड़ोसी मुसलमानों की सहायता से मारा । उसके बाद राज्य सूचना विभाग में सहायक उपदेशक पी एन हांडा का कत्ल किया गया । 70 वर्षीय स्वरानन्द और उनके 27 वर्षीय बेटे बीरेन्दर को मुस्लिम जिहादी घर से उठाकर अपने कैंप में ले गए । वहां उनकी पहले आंखे निकाली गईं ,अंगुलियां काटी गईं फिर उनकी हत्या कर दी गई । मई में बारामुला में सतीन्दर कुमार और स्वरूपनाथ को यातनांयें देने के बाद कत्ल कर दिया गया । भुसन लाल कौल का आंखे निकालने के बाद जिहादियों द्वारा कत्ल कर दिया गया । के एल गंजु जो सोपोर कृषि विश्वविद्याल्य में प्रध्यापक का काम करते थे ,को उनके घर से पत्नी व भतीजे सहित उठाकर झेलम नदी के किनारे एक मस्जिद में ले जाया गया । वहां पर गंजु जी का यातनांयें देने के बाद कत्ल कर दिया गया । भतीजे को नितम्बों में गोली मारकर झेलम में फैंक दिया गया । पत्नी का बलात्कार करने के बाद कत्ल कर दिया गया । सरलाभट्ट जी जो श्रीनगर में सेर ए कश्मीर चिकित्सा कालेज में नर्स थी जेकेएलएफ के जिहादियों ने हासटल से उठाकर कई बार बलात्कार करने बाद कत्ल कर दिया । क्योंकि उसे मुस्लिम जिहादियों और वहां काम करने वाले डाक्टरों के बीच के सम्बन्धों का पता चल चुका था । मई में सोपियां श्रीनगर में बृजलाल उनकी पत्नी रत्ना व बहन सुनीता को मुस्लिम जिहादियों ने अगवा कर लिया । बृज लाल जी को कत्ल कर दिया गया । महिलाओं का बलात्कार करने के बाद उन्हें जीप के पीछे बाँध कर प्रताड़ित करने के बाद उनका कत्ल कर दिया गया । मुस्लिम जिहादियों द्वारा प्रशासन में बैठे अपने आतंकवादी साथीयों के सहयोग से हिन्दुओं पर अत्याचारें का सिलसिला बेरोकटोक जारी था जिसमें जान-माल के साथ-साथ हिन्दुओं की मां-बहन–बेटी भी सुरक्षित नहीं थी । जून आते-आते सैंकड़ों हिन्दुओं का कत्ल किया जा चुका था ।<br /><br />अल्लाह टायगर्स व जेकेएलएफ के मुस्लिम जिहादियों द्वारा 1990 में हलाल किय गए हिन्दू<br />दर्जनों महिलाओं की इजत को तार-तार किया जा चुका था । मस्जिदों व उर्दु प्रैस के माध्यम से मुस्लिम जिहाद का प्रचार-प्रसार जोरों पर था । ये जिहाद कश्मीर के साथ-साथ डोडा में भी पांव पसार चुका था। हिन्दुओं में प्रशासन व जिहादी आतंकवादियों के बीच गठजोड़ से दहशत फैल चुकी थी । प्रशासन का ध्यान हिन्दुओं की रक्षा के बजाए मुस्लिम जिहादियों द्वारा हिन्दुओं पर किये जा रहे अत्याचारों व हिन्दुओं के नरसंहारों को छुपाने पर ज्यादा था । परिणामस्वरूप कश्मीर घाटी से हिन्दुओं का पलायन शुरू हो चुका था । जून तक 50,000 से अधिक हिन्दू परिवार घाटी छोड़ कर जम्मू व देश के अन्य हिस्सों में शरण लेने को मजबूर हो चुके थे । 1990 में मुस्लिम जिहादियों द्वारा उजाड़े गए हिन्दुओं का शर्णार्थी शिविर पहली अगस्त 1993 को जम्मू में डोडा के भदरबाह क्षेत्र के सारथल में बस रोकर उसमें से हिन्दुओं को छांट कर 17 हिन्दुओं का मुस्लिम जिहादियों द्वारा नरसंहार किया गया । 14 अगस्त 1993 को किस्तबाड़ डोडा जिले में मुस्लिम जिहादियों ने बस रोककर उसमें से हिन्दुओं को अलग कर 15 हिन्दुओं का कत्ल कर दिया व हिन्दुओं के साथ सफर कर रहे मुसलमानों को जाने दिया। 5 जनवरी 1996 में डोडा के बारसला गांव में पड़ोसी मुस्लिम जिहादियों द्वारा 16 हिन्दुओं का कत्ल कर दिया गया 12 जनवरी 1996 डोडा के भदरबाह में मुसलमानों द्वारा 12 हिन्दुओं का कत्ल 6 मई 1996 डोडा के सुम्बर रामबन तहसील में 17 हिन्दुओं का मुस्लिम जिहादियों द्वारा कत्ल 7-8 जून को डोडा के कलमाड़ी गांव में मुसलमानों द्वारा 9 हिन्दुओं का कत्ल 1997 25 जनवरी को डोडा जिला के सम्बर क्षेत्र में मुसलमानों द्वारा 17 हिन्दुओं का कत्ल 26 जनवरी को बनधामा श्रीनगर में 25 हिन्दुओं का कत्ल मुस्लिम जिहादियों द्वारा किया गया । 21 मार्च 1997 को श्रीनगर के दक्षिण में 20 किलोमीटर दूर संग्रामपुर में मुस्लिम जिहादियों द्वारा 7 हिन्दुओं को घर से निकाल कर कत्ल कर दिया गया 7 अप्रैल को संग्रामपुर में 7 हिन्दुओं का कत्ल 15 जून को गूल से रामबन जा रही बस से मुस्लिम जिहादियों द्वारा 3 हिन्दू यात्रियों को उतार कर गोली मार दी गई । 24 जून को जम्मू के रजौरी के स्वारी में 8 हिन्दुओं का कत्ल मुसलमानों द्वारा 24 सितम्बर को स्वारी में ही 7 हिन्दुओं का कत्ल पड़ोसी मुस्लिम भाईयों द्वारा आगे बढ़ने से पहले हम आपको ये बताना जरूरी समझते हैं कि जो भी हिन्दू मारे गए या मारे जा रहे हैं उन्हें मारने वाले सबके सब विदेशी नहीं हैं। इन्हें मारने वाले स्थानीय मुसलमान ही हैं क्योंकि पाकिस्तान से आये मुसलमान 1-2-3 तीन की संख्या में छुपते-छुपाते स्वचालित हथियारों से हिन्दुओं का कत्ल तो कर सकते हैं परन्तु 15-20-40-50 की संख्या में मिलकर हिन्दुओं को हलाल करना,कत्ल से पहले अंगुलियां काटना, उनकी मां-बहन बेटी की इज्जत से खिलवाड़ करना उनके गुप्तांगो पर प्रहार करना,कत्ल से पहले हिन्दुओं के अंग-भंग करना ,आंख निकालना,नाखुन खींचना, बाल नोचना,जिन्दा जलाना,चमड़ी खींचना खासकर महिलाओं के दूध पिलाने वाले अंगो से,गाड़ी के पीछे बांधकर घसीटते हुए तड़पा-तड़पा कर मारना । ये सब ऐसे कार्य हैं जो स्थानीय मुसलमानों व सरकार के सहयोग व भागीदारी के बिना सम्भव ही नहीं हो सकते हैं । क्योंकि अगर स्थानीय मुसलमान व सरकार इस सब में शामिल न होते तो किसी विदेशी मुस्लिम जिहादी को रहने व छुपने का ठिकाना न मिलता। ये बात बिल्कुल सपष्ट है कि हिन्दुओं को कत्ल करने में न केवल जम्मू-कश्मीर के मुसलमानों का सहयोग व भागीदारी रही है बल्कि देश के केरल जैसे अन्य राज्यों के मुसलमानों ने भी इस हिन्दू मिटाओ-हिन्दू भगाओ अभियान में बढ़चढ़कर हिस्सा लिया है स्थानीय सहयोग की पुष्टि इन जिहादी हमलों में जिन्दा बचे हिन्दुओं व बाकी देश के मुसलमानों के सहयोग की पुष्टि सुरक्षा बलों द्वारा की गई है । सरकारी सहयोग की पुष्टि करने के हजारों प्रमाण मौजूद हैं । अगर जम्मू-कश्मीर की कोई लड़की किसी पाकिस्तानी मुस्लिम जिहादी से शादी कर लेती है तो उस पाकिस्तानी को जम्मू कश्मीर की नागरिकता मिल जाती है परन्तु अगर जम्मू-कश्मीर की वही लड़की भारत के किसी नागरिक से शादी करती है तो उसकी जम्मू-कश्मीर की नागरिकता समाप्त हो जाती है । हिन्दुओं के कत्ल के आरोपियों को दोषी सिद्ध करने के लिए सरकार अदालत में जरूरी साक्ष्य पेश नहीं करती है। निचली अदालतों द्वारा छोड़े गए दोषियों के विरूद्ध उच्च न्यायालय में अपील तक नहीं की जाती है। ये सब उसी सैकुलर गिरोह व सेकुलर गिरोह की सरकारों द्वारा किया जाता है जो गुजरात के उच्च न्यायालय द्वारा दिय गये हर फैसले को माननीय सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देकर महाराष्ट्र स्थानान्त्रित करवाता है। कहीं जम्मू-कश्मीर में देशभक्त लोगों की सरकार न बन जाये इसके लिये गद्दारों से भरी पड़ी कश्मीर घाटी में विधानसभा सीटों की संख्या देशभक्तों से भरे पड़े जम्मू से अधिक है जबकि कश्मीर घाटी में आबादी और क्षेत्रफल जम्मू से कम है । सरकार सुरक्षा बलों द्वारा मारे गये मुस्लिम जिहादियों के परिवारों को आर्थिक सहायता देकर उन्हें हिन्दू मिटाओ हिन्दू भगाओ अभियान को चलाये रखने के लिए प्रेरित करती है ।……… कुल मिलाकर मुस्लिम जिहादियों द्वारा चलाए जा रहे हिन्दू मिटाओ हिन्दू भगाओ अभियान की सफलता के पीछे जम्मू-कश्मीर की देशविरोधी सैकुलर सरकारों का योगदान पाकिस्तान से कहीं ज्यादा है क्योंकि पाकिस्तान की स्थापना का आधार ही मुस्लिम जिहाद है अतः मुस्लिम जिहादी आतंकवाद को आगे बढ़ाना उसकी विदेश नीति का प्रमुख हिस्सा होना उस इस्लाम की विस्तारवादी नीति का ही अंग है जिसका हमला भारत 638 ई. से झेलता आ रहा है । भारत के नागरिकों के जान-माल की रक्षा करना भारत सरकार का दायित्व है न कि पाकिस्तान का । वैसे भी पाकिस्तान बनवाने वाला यही देशद्रोही सैकुलर गिरोह है जिसने सैंकड़ों वर्षों तक मुस्लिम जिहादियों द्वारा हिन्दुओं पर ढाये गये असंख्य जुल्मों से कोई सबक न लेते हुए 1947 में मुसलमानों के लिये अलग देश बनवा देने के बावजूद मुसलमानों को पाकिस्तान भेजने के बजाए भारत में रख लिया। वो ही मुसलमान आज मुस्लिम जिहादियों को हर तरह का समर्थन व सहयोग देकर आज हिन्दुओं का नामोनिशान मिटाने पर तुले हुए हैं। 1998 25 जनवरी शाम को दो दर्जन मुसलमान श्रीनगर से 30 कि मी दूर गांव वनधामा में आय चाय पी और आधी रात के बाद गांव में 23 हिन्दुओं का कत्ल कर चले गए । सिर्फ विनोद कुमार बच पाया । जिसने अपने मां बहनों रिश्तेदारों को आंसुओं से भरी आंखों से देखा । वहां चारों तरफ खून ही खून बिखरा पड़ा था । 17 अप्रैल को उधमपुर के प्रानकोट व धाकीकोट मे मुस्लिम जिहादियों द्वारा 29 हिन्दुओं का कत्ल किया गया । जिसके बाद इन गांव के लगभग 1000 लोग घर से भाग कर अस्थाई शिवरों में रहने लगे । 18 अप्रैल को सुरनकोट पुँछ में मुसलमानों द्वारा 5 हिन्दुओं का कत्ल 6 मई को ग्राम रक्षा स्मिति के 11 सदस्यों का कत्ल 19 जून को डोडा के छपनारी में 25 हिन्दुओं का कत्ल मुस्लिम जिहादियों द्वारा शादी समारोह पर हमला कर किया गया । 27 जून को डोडा के किस्तबाड़ में 20 हिन्दुओं का कत्ल 27 जुलाई को सवाचलित हथियारों से लैस मुस्लिम जिहादियों ने थकारी व सरवान गांव में 16 हिन्दुओं का कत्ल किया । 8 अगस्त को हिमाचल प्रदेश में चम्बा और डोडा की सीमा पर कालाबन में मुसलमानों द्वारा 35 हिन्दुओं का कत्ल 1999 13 फरवरी को उधमपुर में मुसलमानों द्वारा 5 हिन्दुओं का कत्ल 19 फरवरी को मुसलमानों की इसी गैंग ने रजौरी में 19 व उधमपुर में 4 हिन्दुओं का कत्ल 24 जून को मुस्लिम जिहादियों द्वारा अन्नतनाग के सान्थु गांव में 12 बिहारी हिन्दू मजदूरों का कत्ल 1 जुलाई को मेन्धार पुँछ में 9 हिन्दुओं का मुसलमानों द्वारा कत्ल 15 जुलाई को डोडा के थाथरी गांव में मुसलमानों द्वारा 15 हिन्दुओं का कत्ल 19 जुलाई को डोडा के लायता में 15 हिन्दुओं का मुसलमानों द्वारा कत्ल 2000 28 फरवरी को अन्नतनाग में काजीकुणड के पास 5 हिन्दू चालकों का मुसलमानों द्वारा कत्ल 28 फरवरी को इसी जगह पर 5 सिख चालकों का इन्हीं मुसलमानो द्वारा कत्ल 20 मार्च को जम्मू के छटीसिंहपुरा गाँव में मुसलमानों द्वारा 35 सिखों का कत्ल किया गया । यहां 40-50 जिहादियों ने एक साथ मिलकर सिखों पर हमला कर पुरूषों को अलग कर गोली मार दी । 1अगस्त को पहलगांव में अमरनाथयात्रियों सहित सहित 31 हिन्दुओं का मुसल्मि आतंकवादियों द्वारा कत्ल कर दिया गया । 1अगस्त को ही अन्नतनाग के ही काजीकुण्ड और अछाबल में 27 हिन्दू मजदूरों का कत्ल । 2 अगस्त को कुपबाड़ा में मुसलमानों द्वारा 7 हिन्दुओं का कत्ल इसी दिन डोडा में 12 हिन्दुओं का कत्ल इसी दिन डोडा के मरबाह में 8 हिन्दुओं का कत्ल 24 नवम्बर को किस्तबाड़ में 5 हिन्दुओं का कत्ल 2001 3 फरवरी को 8 सिखों का कत्ल माहजूरनगर श्रीनगर में मुसलमानों द्वारा किया गया । 11 फरवरी को रजौरी के कोट चरबाल में 15 गुजरों का कत्ल किया गया जिसमें छोटे-छोटे बच्चों का भी कत्ल कर दिया गया ।इनका अपराध यह था कि ये जिहादियों के कहे अनुसार हिन्दुओं के शत्रु नहीं बने । मार्च 17 को अथोली डोडा में 8 हिन्दुओं का कत्ल मुसलमानों द्वारा किया गया । मई 9-10 को डोडा के पदर किस्तबाड़ में 8 हिन्दुओं को गला काट कर मुसलमानों द्वारा हलाल कर दिया गया । सब के सब शव क्षत विक्षत थे । 21 जुलाई को बाबा अमरनाथ की पवित्र गुफा पर हमले में मुस्लिम जिहादियों द्वारा 13 हिन्दुओं का कत्ल किया गया । इस हमले मे 15 हिन्दू घायल हुए । जिहादियों ने शेषनाग में बारूदी शुंरगों से विस्फोट कर सैनिकों को गोलीबारी में उलझाकर पवित्र गुफा पर हमला कर भोले नाथ के भक्तों का कत्ल किया । 21 जुलाई को किस्तबड़ डोडा में 20 हिन्दुओं को मुसलमानों द्वारा मारा गया 22 जुलाई को डोडा के चिरगी व तागूड में 15 हिन्दुओं को उनके घरों से निकाल कर मुसलमानों ने कत्ल किया 4 अगस्त को डोडा के सरोतीदार में मुसलमानों द्वारा 15 हिन्दुओं का कत्ल किया गया । 6 अगस्त को स्वचालित हथियारों से लैस तीन मुस्लिम जिहादियों ने जम्मू रेलवेस्टेशन पर हमलाकर 11 लोगों का कत्ल कर दिया व 20 इस हमले में घायल हुए । 2002 1 जनवरी को पूँछ के मगनार गाँव में 6 हिन्दुओं का कत्ल किया गया 7 जनवरी को जम्मू के रामसूर क्षेत्र में 17 व बनिहाल के सोनवे-पोगल क्षेत्र में 6 हिन्दुओं का कत्ल किया गया 17 फरवरी को रजौरी के भामवल-नेरल गाँव में मुसलमानों द्वारा 8 हिन्दुओं का कत्ल किया गया । 14 मई को जम्मू-पठानकोट राजमार्ग पर कालुचक में मुस्लिम जिहादियों द्वारा 33 सैनिकों व सैनिकों को परिवारों के लोगों का कत्ल किया गया जिसमे 6 बस यात्री भी शामिल थे । 13 जुलाई को राजीव नगर(क्वासीम नगर) जम्मू में 28 हिन्दुओं का कत्ल किया गया । मरने वालों में 3 साल का बच्चा भी था । 30 जुलाई को जिहादियों ने अमरनाथ यात्रियों को वापिस ला रही कैब को अन्नतनाग में ग्रेनेड हमले से उड़ा दिया । 6 अगस्त को पहलगांव के पास ननवाव में जिहादियों द्वारा भारी सुरक्षा व्यवस्था में चल रहे आधार शिविर मे अमरनाथ यात्रियों पर हमला कर 9 हिन्दुओं को कत्ल किया गया व 33 को घायल कर दिया । 29 अगस्त को डोडा और रजौरी में 10 हिन्दुओं का कत्ल किया गया। 24 नवम्बर को जम्मू में ऐतिहासिक रघुनाथ मन्दिर पर हमला कर 14 हिन्दुओं का कत्ल किया गया व 53 हिन्दू इस हमले मे घायल हुए 19 दिसम्बर को जिहादियों ने रजौरी के थानामण्डी क्षेत्र मे तीन लड़कियों को बुरका नहीं पहनने की वजह से गोली मार दी ।बुरका पहनाने पर ये मुस्लिम जेहादी इसलिए भी ज्यादा जोर देते हैं क्योंकि बुरके को ये आतंकवादी सुरक्षावलों को चकमा देकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए उपयोग करते हैं। 2003 24 मार्च को सोपियां के पास नदीमार्ग गांव में मुस्लिम जिहादियों द्वार 24 हिन्दुओं का कत्ल कर दिया गया । 7 जुलाई को नौसेरा में 5 हिन्दुओं का कत्ल किया गया । 2004 5 अप्रैल को अन्नतनाग जिले के पहलाम में 7 हिन्दुओं का कत्ल कर दिया गया । 12 जून को पहलगाम में ही 5 हिन्दूयात्रियों का कत्ल इन मुस्लिम जिहादियों द्वारा किया गया । 2006 30 अप्रैल को डोडा के पंजदोबी गाँव में मुस्लिम जिहादियों द्वारा 19 हिन्दुओं का कत्ल 1मई को उधमपुर के बसन्तपुर क्षेत्र में मुस्लिम जिहादियों द्वारा 13 हिन्दुओं का कत्ल । 23 मई को श्रीनगर में ग्रेनेड हमले में 7 हिन्दू यात्रियों का कत्ल 25 मई को श्रीनगर में ही 3 हिन्दू यात्रियों का ग्रेनेड हमला कर कत्ल किया गया फिर 31 मई को ही ग्रेनेड हमला कर 21 हिन्दू घायल किय गए 12 जून को फिर ग्रेनेड फैंक कर 1 यात्री का कत्ल किया गया व 31 घायल किये गए । 12 जून को ही मुस्लिम जिहादियों द्वारा अन्नतनाग में 8 हिन्दू मजदूरों का कत्ल किया गया व 5 घायल किये गए । 21 जून को गंदरबल श्रीनगर में मुस्लिम जिहादियों ने ग्रेनेड हमला कर 5 अमरनाथ यात्रियों को घायल किया । 11 जुलाई को श्रीनगर में ही अमरनाथ तीर्थ यात्रियों को निशाना बनाकर किये गए श्रृंखलाबद्ध ग्रेनेड हमलें में 8 लोग मारे गए व 41 घायल हुए । 12 जुलाई को 7 हिन्दू तीर्थ यात्री श्रीनहर ग्रेनेड हमलों में घायल किये गए । हिन्दुओं पर किस हद तक अपने भारत में ज्यादतियां हुई हैं उन्हें भावुक ढंग से लिख पाना हमारे जैसे गणित के विद्यार्थी के लिए सम्भव नहीं । हमारे लिये यह भी सम्भव नहीं कि हम हिन्दुओं पर हुए हर अत्याचार का पूरा ब्यौरा जुटा सकें लेकिन फिर भी जो थोड़े से आंकड़ें हम प्राप्त कर सके वो आपके सामने रखकर हमने आपको सिर्फ यह समझाने का प्रयत्न किया है कि ये जो मुस्लिम जिहादियों और धर्मनिर्पेक्षतावादियों का गिरोह है वो धरमनिर्पेक्षता के बहाने हिन्दुओं को तबाह और बरबाद करने में जुटा है। इस गिरोह से जुड़े एक-एक व्यक्ति के हाथ देशभक्त हिन्दुओं के खून से रंगे हुए हैं ये गिरोह हर उस व्यक्ति का शत्रु है जो भारतीय संस्कृति को अपनी संस्कृति समझता है जो देश को अपनी मां समझता है जो देश में जाति क्षेत्र संप्रदाय विहीन कानून व्यवस्था का समर्थन करता है जो देश में मानव मुल्यों का समर्थन करता है कुल मिलाकर ये राक्षसी गिरोह हर उस भारतीय का शत्रु है जो देशभक्त है । इस गिरोह को न सच्चे हिन्दू की चिन्ता है ,न सच्चे मुसलमान की, न सच्चे सिख ईसाई बौध या जैन की इसे चिन्ता है ,तो सिर्फ जयचन्दों, जिहादियों व धर्मांतरण के ठेकेदारों की जिनके टुकड़ों व वोटों के आधार पर इस देशद्रोही गिरोह की राजनीति आगे बढ़ती है इस गिरोह का एक ही उदेशय है जो ये पंक्तियां स्पष्ट करती हैं न हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा तु इन्सान की औलाद है सैकुलर शैतान बनेगा इन धर्मनिर्पेक्षतावादियों का बढ़पन देखो कितने प्यार से अपने पाले हुए मुस्लिम जिहादियों के हाथों मारे गए हिन्दुओं का दाहसंस्कार करने की इजाजत हिन्दुओं को दे रहे हैं वो भी तब अगर गलती से उस क्षेत्र में जिहादियों से कोई हिन्दू बच जाए तो । कौन कहता है इनमें और राक्षस औरंगजेब में कोई फर्क नहीं फर्क है ये धर्मनिर्पेक्षता के ठेकेदार हिन्दुओं को खुद नहीं मारते सिर्फ मारने वाले मुस्लिम जिहादियों के अनुकूल बाताबरण बनाते हैं, उनको अपना भाई कहर उनका हौसला बढ़ाते हैं, उनको कहीं सजा न हो जाए इसलिए पोटा जैसे सख्त कानून हटाते हैं, सजा हो भी जाए तो सिर्फ फाईल ही तो दबाते हैं सारे देश के हिन्दुओं से इन मुस्लिम जिहादियों की करतूतों को छुपाने के लिए जिहादियों का कोई धर्म नहीं होता ऐसा फरमाते हैं कोई न माने तो अपनी बात पर यकीन दिलवाने के लिए 10-11 हिन्दुओं को जबरदस्ती जेल में डाल कर हिन्दू-आतंकवादी हिन्दू-आतंकवादी चिल्लाते हैं कहीं हिन्दू छूट न जाँयें इसलिए जबरदस्ती मकोका भी लगाते हैं । धर्मनिर्पेक्षता की आड़ में हिन्दुओं के खून से लत-पथ अपने जिहाद व धर्मांतरण समर्थक चेहरे को छुपाते हैं। मुस्लिम व ईसाई देशों से पैसा और समर्थन हासिल करने के लिए राष्ट्रबाद-सर्बधर्म सम्भाव से प्रेरित हिन्दुओं व उनके संगठनों को अक्सर सांप्रदायिक व आंतकबादी कहकर उनपर हमला बोलते हैं। हिन्दू संगठनों द्वारा हिन्दुओं पर हो रहे हमलों का बिरोध करने पर ये देशद्रोही गिरोह प्रतिबंध की मांग उठाकर, दबाब बनाकर अपने हिन्दू मिटाओ हिन्दू भगाओ अभियान को आगे बढ़ाता है । जागो हिन्दू पहचानों इन देश के गद्दारों को, हिन्दुओं के कातिलों को मुस्लिम जिहादियों और धर्मांतरण के ठेकेदारों को । देखो भाई जो कुछ आपने ऊपर के पन्नों में पढ़ा और देखा वो सब आपके साथ न हो इसका अभी से प्रबन्ध कर लो संगठित हो जाओ किसी भी देशभक्त संगठन से जुड़ जाओ कोई अच्छा नहीं लगता है तो नया संगठन बनाओ वरना बहुत देर हो जाएगी । कहा भी गया है घर में आग लगने पर कुआं खोदने का क्या काम काम मुशकिल है असम्भव नहीं। सिर्फ जरूरत है तो जिहादियों और उनके ठेकेदारों को पहचाने की । वो किस संप्रदाय, दल या क्षेत्र से है ये सब भूल जाओ सिर्फ इतना ख्याल रखो कि जो भी इन मुस्लिम जिहादियों-आंतकवादियों-कातिलों को बचाता है, बचाने की कोशिश करता है, बचाने के बहाने बनाता है ,हिन्दुओं के कत्ल को जायज ठहराता है वो ही सब हिन्दुओं का कातिल है और कातिल को जिन्दा छोड़ना मानवता का अपमान है । उठो हमारे प्यारे लाचार हिन्दूओ छोड़ो ये सब झूठी शांति के दिलासे और संगठित होकर टूट पड़ों इस जिहादी राक्षस पर वरना ये जिहादी राक्षस हर हिन्दूघर को तबाह और बर्बाद कर देगा । तड़प-तड़प कर अपमानित होकर निहत्था होकर मरने से बेहतर है एक बार सिर उठाकर संगठित होकर शत्रु से दो-दो हाथ कर लेना वरना जरा सोचो उन बच्चों के बारे में जिन बच्चों ने अपने मां-बाप को अपने सामने कत्ल होते देखा उन भाईयों के बारे में जिन्होंने इन जिहादियों के हाथों अपनी बहन को अपमानित होते देखा सोचो उस पति के बारे मे जिसने अपनी पत्नी का इन जिहादियों के हाथों बलात्कार के बाद कत्ल होते देखा सोचो उन माता-पिता के बारे में जिनके सामने उनके दूध पीते बच्चे इन जिहादियों ने हलाल कर डाले और सोचो मुस्लिम जिहादियों के भाईयों इन धर्मनिर्पेक्षतावादियों के इस सेकुलर गिरोह के बारे में जिसने इन कातिल जिहादियों को बचाने के लिए सब नियम कमजोर कर डाले ।hindu tigerhttp://www.blogger.com/profile/06085116912025834954noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9163350041696449025.post-63523958606155118042009-01-17T05:00:00.000-08:002009-01-17T05:02:33.992-08:00राष्ट्रीय हितों से खिलवाड़किसी भी देश की अदालत का यह काम नहीं हो सकता और न होना चाहिए कि वह अपने यहां की सरकार को बार-बार बताए कि घुसपैठ रोकना आवश्यक है और इसे रोकने के लिए इस-इस तरह के उपाय करने चाहिए? यह भारत का दुर्भाग्य है कि सुप्रीम कोर्ट को केंद्रीय सत्ता को चेताना पड़ रहा है कि बांग्लादेश से होने वाली घुसपैठ देश के लिए एक बड़ा खतरा है। यह पहली बार नहीं जब सुप्रीम कोर्ट ने अवैध रूप से आ बसे बांग्लादेशी नागरिकों को लेकर केंद्र सरकार को फटकार लगाई हो, लेकिन उसकी सेहत पर कोई असर पड़ता नहीं दिखता। इसमें संदेह है कि सुप्रीम कोर्ट की ताजा फटकार के बाद केंद्र सरकार और संबंधित राज्य सरकारें चेतेंगी, क्योंकि समाज और राष्ट्रहित उनकी प्राथमिकता सूची में नजर ही नहीं आते। इसका प्रमाण पश्चिम बंगाल सरकार की इस घिसी-पिटी दलील से मिलता है कि राज्य के नागरिकों और बांग्लादेशियों में अंतर करना कठिन है? क्या कोई बताएगा कि अंतर खोजने की समस्या क्यों आ रही है? आखिर ऐसे उपाय क्यों नहीं किए जा रहे जिससे बांग्लादेशी नागरिक भारत में प्रवेश ही न करने पाएं? अभी हाल में गृहमंत्री पी चिदंबरम ने यह कह कर देश को चौंकाया था कि उन्हें समझ नहीं आ रहा कि बांग्लादेशियों को वर्क परमिट क्यों जारी किए जा रहे हैं? अब यदि हमारे गृहमंत्री को भी इसकी जानकारी नहीं तो फिर इसका मतलब है कि कोई यह देखने-सुनने वाला नहीं कि बांग्लादेश की सीमा पर क्या हो रहा है? आश्चर्य नहीं कि इसी कारण सीमा पर बाड़ लगाने का काम पूरा नहीं हो पा रहा है। यह आघातकारी है कि सुप्रीम कोर्ट ने न केवल यह पाया कि उसने चार वर्ष पहले विवादास्पद आईएमडीटी अधिनियम रद करते हुए जो निर्देश जारी किए थे उनकी अनदेखी की गई, बल्कि यह भी महसूस किया कि बहुद्देशीय पहचान पत्र प्रदान करने का काम कच्छप गति से हो रहा है। बांग्लादेश से होने वाली घुसपैठ को रोकने और अवैध रूप से आ बसे वहां के लोगों को बाहर निकालने में जानबूझकर बरती गई लापरवाही का दुष्परिणाम यह है कि पिछले दस वर्षो में बांग्लादेशियों की संख्या एक करोड़ से बढ़कर दो करोड़ हो गई है। यह और कुछ नहीं भारतीय शासनतंत्र के निकम्मेपन का प्रमाण है। जो शासन-प्रशासन अपने समक्ष उपस्थित खतरों से मुंह मोड़ने में लगा रहता हो वह देश को संकट की ओर ले जाने के अलावा और कुछ नहीं कर सकता। देश के नागरिकों को पहचान पत्र देने का निर्णय बहुत पहले ले लिया गया था, लेकिन अभी तक वह सरकारी फाइलों में ही कैद है। यदि सभी नागरिकों को पहचान पत्र दिया जा सके तो तमाम समस्याओं का समाधान संभव है, लेकिन शायद हमारे अधिसंख्य नेताओं का हित समस्याओं के बने रहने में ही है। यही वे नेता हैं जो कदम-कदम पर नाकारापन दिखाते हैं और जब न्यायपालिका उन्हें फटकारती है तो यह रोना रोते हैं कि देखिए, कार्यपालिका के काम में हस्तक्षेप हो रहा है। क्या वे यह चाहते हैं कि न्यायपालिका भी उनकी तरह आंख मूंद कर बैठ जाए और देश को गर्त में जाने दे? यह जानना कठिन है कि न्यायपालिका की चेतावनी नेताओं और नौकरशाहों पर असर करती है या नहीं, लेकिन आए दिन की ऐसी चेतावनियों से देश-दुनिया को यही संदेश जाता है कि भारत एक ऐसा ढुलमुल राष्ट्र है जहां राष्ट्रीय हित भी ताक पर रख दिए जाते हैं।hindu tigerhttp://www.blogger.com/profile/06085116912025834954noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9163350041696449025.post-11242926646543657622009-01-12T01:05:00.000-08:002009-01-12T01:06:52.100-08:00अपनी बेटियों की शादी आतंकियों से करो वरना!लड़कियों के स्कूल जाने पर प्रतिबंध लगाने के बाद तालिबान ने अपने प्रभाव वाले पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिमी सीमांत प्रांत में एक नया फरमान जारी किया है। संगठन ने लोगों को उनकी बेटियों की शादी आतंकियों से करने का आदेश दिया है। ऐसा न करने वालों को भयानक परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहने की धमकी भी दी गई है। मस्जिदों से घोषणाएं कर इस अभियान को गति दी जा रही है।<br /><br />हाल ही में कुछ पीड़ित महिलाओं ने उग्रवादियों का फरमान मानने के बजाय प्रशासन से न्याय की गुहार लगाई। इसके बाद ही ऐसे मामले सामने आए। पेशावर में एक प्राइमरी स्कूल की टीचर सलमा ने एक अखबार को बताया कि तालिबान ने लोगों को मस्जिदों में यह घोषणा करने के लिए कहा है कि क्या उनके यहां अविवाहित लड़कियां हैं ? ऐसा होने पर उनका निकाह किया जा सकेगा। उन लड़कियों का निकाह उग्रवादियों से होगा।<br /><br />अखबार में 30 वर्षीय सलमा के हवाले से कहा गया है कि सीधे तौर पर न मानने की स्थिति में लड़कियों का जबरन निकाह कराया जाएगा। सलमा ने बताया कि स्वात घाटी में तालिबान ने महिलाओं को धमकी दी है कि अगर वह अपने घरों के बाहर बिना पहचान पत्र या पुरुष रिश्तेदार के बिना पाई गईं , तो उन्हें गंभीर परिणाम भुगतना पड़ेगा। इस बीच सरकार द्वारा शुरू किए गए राहत कार्यक्रम में महिलाओं के रजिस्ट्रेशन कराने पर तालिबान ने शुक्रवार को रोक लगा दी और पाकिस्तान के अशांत उत्तरी वजीरिस्तान कबायली इलाके में सह-शिक्षा वाले स्कूलों को पांच जनवरी तक बंद करने का निर्देश दिए।<br /><br />शुक्रवार के नमाज के बाद इलाके के सभी मस्जिदों के मौलवियों ने इस संबंध में घोषणा की। केंद्रीय जामिया मस्जिद के मौलवी कारी रोमन ने तालिबान के निर्णय को पढ़कर सुनाया। कुछ मौलवियों ने तालिबान के हाफिज बहादर गुट के हवाले से कहा कि सरकार द्वारा गरीब महिलाओं के लिए शुरू किया गया बेनजीर आय सहायता कार्यक्रम के फॉर्म को राष्ट्रीय पहचान कार्ड के आधार पर भरा जा रहा है और कार्ड में फोटो लगे हुए हैं। तालिबान ने कहा कि यह महिलाओं का अपमान है और उन्हें कार्यक्रम के लिए पंजीकरण नहीं कराना चाहिए।hindu tigerhttp://www.blogger.com/profile/06085116912025834954noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9163350041696449025.post-29396223959313652492009-01-12T00:56:00.000-08:002009-01-12T00:58:19.067-08:00पशुपतिनाथ मंदिर विवादनेपाल में प्रधानमंत्री ‘प्रचंड’ ने पशुपतिनाथ मंदिर में भारतीय पुजारियों को पूजा करने की अनुमति भले ही दे दी हो, लेकिन यह विवाद खत्म होने की बजाए और बढ़ता दिख रहा है।<br /><br />पशुपति क्षेत्र विकास न्यास (पीएडीटी) के सदस्य सचिव ने मंदिर में नियुक्त दक्षिण भारतीय भट्ट पुजारियों पर चढ़ौती के लाखों रुपए की हेर-फेर करने का आरोप लगाया है, वहीं भारतीय पुजारियों की नियुक्ति का समर्थन कर रहे मंदिर की देखभाल करने वाले राजभंडारियों ने आरोप लगाया है कि भारतीय पुजारियों को इस्तीफा देने के लिए बाध्य किया गया था।भारतीय पुजारियों को हटाए जाने और उनकी जगह नेपाली पुजारियों की नियुक्ति से नेपाली और भारतीय हिन्दू समाज में असंतोष उत्पन्न हो गया था।इस मुद्दे में पूर्व नरेश ज्ञानेन्द्र और नेपाली कांग्रेस के सख्त रुख और भारतीय नेताओं की कड़ी प्रतिक्रिया के कारण नेपाली प्रधानमंत्री को भारतीय पुजारियों की बहाली करनी पड़ी है।प्रचंड के नेतृत्व वाली नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने भारत पर उसके आंतरिक राजनीतिक एवं सांस्कृतिक हमलों में हस्तक्षेप का आरोप लगाया है।<br /><br />पीएडीटी के सदस्य सचिव परमानंद शक्य ने आज यहां रिपोर्ट्स क्लब में पत्रकारों से बातचीत में कहा, “यह राष्ट्रीयता का सवाल है, इसलिये हम नेपाली पुजारियों की नियुक्ति करेंगे। भारतीय पुजारियों की नहीं”।उन्होंने आरोप लगाया कि मंदिर में बड़े पैमाने पर अनियमितताएं हो रही थीं। चढ़ावे का कोई हिसाब किताब नहीं था। उन्होंने कहा कि न्यास का प्रमुख उद्देश्य मंदिर की व्यवस्थ को दुरस्त करना है।शाक्य के अनुसार मंदिर में प्रतिदिन लगभग 40 हजार रपए का चढ़ावा सामान्य दर्शनार्थियों से आता है, जबकि रुद्राभिषेक एवं अन्य विशेष पूजा से अलग दक्षिणा आती है। ये सारा धन कहां जाता है, इसका कोई हिसाब नहीं है। शाक्य ने यह भी बताया कि अब संरक्षक पुजारियों की भूमिका में काम कर रहे दक्षिण भारतीय पुजारियों ने चढ़ावे में से कोई भी हिस्सा लेने से मना कर दिया है तथा वेतन एवं भत्तों की मांग की है, जिसपर न्यास सहमत हो गया है। उधर, मंदिर के संरक्षक शिवशरण राजभंडारी ने कहा कि प्रशासन ने दक्षिण भारतीय पुजारियों को इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया था।<br /><br />उन्होंने कहा कि न्यास द्वारा नियुक्त नए कर्मचारी भारतीय पुजारियों के प्रति अत्यंत असहयोग पूर्ण रवैया अपना रहे थे। इस वजह से उनके सामने इस्तीफा देने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं बचा। राजभण्डारी ने मांग की पीएडीटी के मौजूदा कानून में संशोधन कर न्यास का संरक्षक देश के शासन प्रमुख यानि प्रधानमंत्री की बजाये राष्ट्र प्रमुख यानि राष्ट्र्रपति को बनाया जाए।उधर, नेकपा (माओवादी) की केन्द्रीय कार्यसमिति की बैठक में एक प्रस्ताव पारित कर भारत और अमेरिका पर नेपाल की राष्ट्रीय स्वतंत्रता एवं रक्षा सहित प्रमुख आंतरिक मामलों में लगातार हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया।प्रस्ताव में कहा गया कि भारत अपनी विस्तारवादी नीतियों के कारण नेपाल के आर्थिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक मामलों में जबरदस्ती हस्तक्षेप कर रहा है।इसी तरह अमेरिका के राजदूत जगह-जगह माओवादियों के खिलाफ भाषण दे रहे हैं। माओवादियों ने भारत पर नेपाल के जलसंसाधनों पर एकाधिकार करने की कोशिशों का भी आरोप लगाया है।राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पशुपतिनाथ मंदिर विवाद आगे और बड़ा रूप ले सकता है।hindu tigerhttp://www.blogger.com/profile/06085116912025834954noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9163350041696449025.post-25182557309874455462008-12-29T02:04:00.000-08:002008-12-29T02:05:59.721-08:00बिंदी पर लगी पाबंदी अब हटीदक्षिण अफ्रीका में भारतीय नर्सों ने बिंदी, मंगलसूत्र और नथ पहनने की लड़ाई जीत ली है। दक्षिण अफ्रीका के अस्पतालों में काम करने वाली हिंदू महिलाओं को किसी तरह का धार्मिक चिन्ह पहनने से रोक दिया गया था जिसका उन्होंने पुरजोर विरोध किया था।<br /><br />क्वाजुलु नाटाल प्रांत की स्वास्थ्य मंत्री पेगी कोनेनी ने घोषणा की है कि "विवाहित हिंदू महिलाएँ ड्यूटी के दौरान भी मंगलसूत्र, नथ पहनने और बिंदी लगाने के लिए स्वतंत्र हैं।"<br /><br />स्वास्थ्य मंत्री ने कहा, "बिंदी हिंदू महिला के शादीशुदा होने का प्रतीक है जिसका हम सम्मान करते हैं, ठीक उसी तरह जैसे शादी की अंगूठी को जिस तरह मान्यता हासिल है वैसे ही हिंदू महिलाओं की बिंदी को भी होनी चाहिए।"<br /><br />सबसे पहले सरकारी एडिंगनटन अस्पताल ने नर्सों को ड्यूटी के दौरान बिंदी, मंगलसूत्र और नथ पहनने से रोक दिया था। मामले ने तूल पकड़ा, नर्सों ने इसका विरोध किया और फिर स्वास्थ्य मंत्री को मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा। इस फैसले को लागू करने वालों का कहना था कि ऐसा करने का मकसद संक्रमण को रोकना था।<br /><br />इस निर्णय के बाद अफ्रीकी तमिल फेडरेशन और दक्षिण अफ्रीकी हिंदू सभा जैसे संगठनों ने इस मुद्दे पर बड़ा अभियान चलाया था। तमिल फेडरेशन ने इस कदम को 'हिंदू धर्म का मजाक और अपमान' बताया था। स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि कोई भी सरकारी विभाग किसी धर्म विशेष के व्यक्तियों के लिए अलग मानदंड लागू नहीं कर सकता।<br /><br />स्वास्थ्य मंत्री ने कहा, "जब महिलाएँ अपने पूरे चेहरे पर पाउडर और लिपस्टिक लगाती हैं तो हमें कोई एतराज नहीं होता लेकिन एक छोटी सी बिंदी पर आपत्ति होती है, यह कहीं से न्यायसंगत नहीं था।" दक्षिण अफ्रीका के हिंदू संगठनों और भारतीय मूल की नर्सों ने इस फैसले का स्वागत किया है।hindu tigerhttp://www.blogger.com/profile/06085116912025834954noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9163350041696449025.post-53041359013625957402008-12-29T01:56:00.000-08:002008-12-29T02:00:14.937-08:00सहमे हुए हैं बांग्लादेश के हिंदूबांग्लादेश की राजधानी का पुराना इलाका बिलकुल दिल्ली के चाँदनी चौक जैसा दिखाई देता है। वही सँकरी गलियाँ और छोटी-छोटी दुकानें। यहाँ के ताते बाजार और शाखारी बाजार में कई हिंदू रहते हैं। जगह-जगह हिंदू देवी-देवताओं की तस्वीरें दिख जाती हैं। यहाँ के जगन्नाथ मंदिर के कर्ता-धर्ता और पेशे से सुनार बाबुलचंद्र दास का कहना है कि अल्पसंख्यक, खासकर हिंदुओं की स्थिति यहाँ बहुत खराब है।<br /><br />उन्होंने कहा कि पिछले चुनावों के बाद भड़की हिंसा को हम नहीं भूल सकते। हमें आज भी डर है कि हम वोट डालने जाएँ या नहीं, क्योंकि बाद में हम पर हमले भी हो सकते हैं। हमें कहा जाता है कि आप हिंदू हो, भारत चले जाओ। हमने भी 1971 की आजादी के आंदोलन में हिस्सा लिया और अब हमारे पास कोई अधिकार नहीं हैं।<br /><br />नजारा अलग है : लेकिन ढाका के शाखारी बाजार का नजारा एकदम अलग है। यहाँ लगभग पूरी आबादी ही हिंदुओं की है। इक्का-दुक्का मुसलमान यहाँ दिख जाएँगे।<br /><br />यहाँ पर होटल चला रहे दीपक नाग कहते हैं कि यहाँ कोई समस्या नहीं है, क्योंकि यहाँ हम मजबूत स्थिति में हैं। हाँ, गाँवों में हिंदू उत्पीड़न झेलते हैं। ढाका के इस बाजार में हमें कोई छू नहीं सकता।<br /><br />शाखरी बाजार बाकी देश से काफी अलग है। बांग्लादेश में करीब 8-10 प्रतिशत हिंदू हैं, लेकिन सामाजिक कार्यकर्ताओ की मानें तो ये संख्या काफी ज्यादा है और सरकारी आँकड़े पूरी सच्चाई बयाँ नहीं करते।<br /><br />लेखक, पत्रकार और फिल्मकार शहरयार कबीर कहते हैं खेद की बात है कि बांग्लादेश में हिंदू हाशिए पर हैं। उनका संसद में, प्रशासन में सही प्रतिनिधित्व नहीं है।<br /><br />इस्लामी राष्ट्र : वे कहते हैं संविधान को जिया उर रहमान ने धर्मनिरपेक्ष से बदलकर इस्लामी रूप दे दिया था और फिर जनरल इरशाद ने इस्लाम को राष्ट्रधर्म का दर्जा दे दिया।<br /><br />इसके बाद हिंदू, बौद्ध, ईसाई सब दूसरे दर्जे के नागरिक हो गए। हिंदुओं से भेदभाव और उनका दमन जारी है। वर्ष 2001 के चुनाव के बाद हुई हिंसा आज भी दहशत फैला रही है।<br /><br />कबीर के अनुसार देश में भय का माहौल है और जैसे-जैसे इस्लामी चरमपंथ उभर रहा है, धर्मनिरपेक्ष ताकतों की जगह कम होती जा रही है। हालाँकि यहाँ के हिंदू स्वयं को अल्पसंख्यक नहीं मानते और अपने को मुख्यधारा के हिस्से के रूप में देखते हैं।<br /><br />काजोल देवनाथ हिंदू बौद्ध ईसाई एकता परिषद से जुड़े हैं। वे बताते हैं जब पूर्वी पाकिस्तान था, राष्ट्रीय असेंबली की 309 में से 72 सीटें अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित थीं।<br /><br />उनका कहना है अल्पसंख्यकों ने अलग सीटों के बजाय सम्मिलित सीटों की माँग की, पर आज हालत यह है कि अवामी लीग ने 15 करीब तो बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने केवल चार से पाँच अल्पसंख्यक उम्मीदवार खड़े किए हैं।<br /><br />देबनाथ के मुताबिक जिस भी हिंदू से बात करते हैं, वे 2001 के चुनावों के बाद हुई हिंसा की याद से सिहर उठता है। शिराजपुर में पूर्णिमा नाम की 15 साल की लड़की से सामूहिक बलात्कार हुआ। बारीसाल, बागेरहाट, मानिकगंज और चिट्टागोंग समेत दक्षिण और उत्तर बांग्लादेश में अत्याचार का दौर चला। घर, मंदिर, धान की फसलें जला दी गईं। ये हिंसा महीनों चली।<br /><br />भारत का असर : ढाका विश्वविद्यालय के रिटायर्ड प्रोफेसर अजय राय कहते हैं और तो और लड़कियों के साथ बदसलूकी होती है। सिंदूर और बिंदी लगाने पर फिकरे कसे जाते हैं। भारत की घटनाओं का असर भी बांग्लादेश के हिंदू झेलते हैं।<br /><br />राय का कहना है कि जब भारत में कुछ घटनाएँ होती हैं, जैसे गुजरात या बाबरी मस्जिद विध्वंस, यहाँ प्रतिक्रिया बहुत तीव्र होती है। बाबरी विध्वंस के बाद यहाँ हिंदू पूजा स्थलों पर कई हमले हुए।<br /><br />अल्पसंख्यकों की जमीन पर कब्जा कर लेने की समस्या लगातार बनी रहती है, क्योंकि वे कमजोर हैं और सरकार और प्रशासन का भी साथ उन्हें नहीं मिलता।<br /><br />अजय राय एक गैरसरकारी संस्था संपृति मंच के जरिये कानून-व्यवस्था पर नजर रख रहे हैं और अल्पसख्यकों से चुनाव में बेखौफ हिस्सा लेने का आह्वान कर रहे हैं।<br /><br />साथ ही किसी भी हिंसक घटना या डराने-धमकाने की कोशिश को चुनाव आयोग तक पहुँचा रहे हैं, लेकिन हिंदू समुदाय चुनाव के बाद और सरकार गठन के दौर में संभावित हिंसा से अब भी चिंतित है।hindu tigerhttp://www.blogger.com/profile/06085116912025834954noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9163350041696449025.post-72429051879442651292008-12-29T01:30:00.000-08:002008-12-29T01:31:31.875-08:00एक नापाक गठबंधनएक नापाक गठबंधन पाकिस्तान की सरकार और विशेषकर सेना तथा आईएसआई के गठजोड़ ने एक बहुत खतरनाक व अनैतिक कार्य यह किया कि मजहबी कट्टरवादी तत्वों को बड़ी संख्या में पाकिस्तान की औपचारिक सेना के सहयोग के लिए तैयार किया। यह अलग बात है कि इस समय इनमें से कुछ संगठन पाकिस्तान की सेना पर ही हमला कर रहे हैं, पर योजना यह थी कि वे पाकिस्तान की सेना के सहायक के रूप में भारत से लड़ेंगे। जब अमेरिका व पाकिस्तान मिलकर सोवियत संघ की सेना के विरुद्ध अफगानिस्तान में अभियान चला रहे थे तो इसके लिए मुस्लिम कट्टरवादी तत्वों के बहुत से दस्ते तैयार किए गए। सोवियत संघ की सेना की अफगानिस्तान से वापसी के बाद सवाल यह था कि इन आतंकियों का क्या उपयोग किया जाए? वैसे तो भारत के विरुद्ध ऐसे तत्वों को तैयार करने की प्रवृत्ति पाकिस्तानी सेना में पहले से थी, पर जब ये इतनी बड़ी संख्या में युद्ध का वास्तविक अनुभव करने के बाद उपलब्ध थे तो पाकिस्तान की सेना ने इन्हें अपनी भारत विरोधी रणनीति में अधिक व्यापक स्थान देना आरंभ कर दिया। इनको दो तरह की भूमिका दी गई। एक भूमिका तो भारत में, विशेषकर कश्मीर में आतंकवादी हमले करने की थी। दूसरी भूमिका यह थी कि भारत के विरुद्ध युद्ध की स्थिति में पाकिस्तान सेना का साथ दें। पाकिस्तान की यह नीति बेहद अनैतिक और खतरनाक इस कारण थी कि यदि दुनिया के सब देश इसे अपनाना आरंभ कर दें तो हमारा विश्व एक बहुत ही हिंसक हमलों से घायल विश्व बन जाएगा और सभी मजहबों की क्षति होगी। इसके बावजूद विश्व के अधिक शक्तिशाली देशों, विशेषकर अमेरिका ने आरंभिक दौर में इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए कुछ नहीं किया। कारगिल में जनरल मुशर्रफ (जिनकी मुख्य पहचान यह रही कि वह एक पूरी तरह अवसरवादी व्यक्ति हैं) ने इन आतंकियों की सैनिकों के साथ घुसपैठ करवा कर इस प्रयोग को एक नई ऊंचाई तक पहुंचा दिया। 9/11 के बाद जोर-जबरदस्ती से अमेरिका ने मुशर्रफ को अपने आतंकवादी-विरोधी युद्ध में शामिल करवाया तो स्थिति बदलने लगी। इनमें से कई आतंकवादी संगठनों ने पाकिस्तान की सेना पर हमले किए और मुशर्रफ की हत्या के प्रयास भी किए। लाल मस्जिद पर सैन्य कार्रवाई के बाद यह तनाव और तीखा हो गया। पाकिस्तानी सेना और कट्टरवादी आतंकियों के आपसी संघर्ष में दोनों ओर के सैकड़ों व्यक्ति मारे गए। इसके बावजूद पाकिस्तानी सेना व आईएसआई में इतनी कट्टरवादी सोच के अधिकारी भरे हुए हैं कि वे इन कट्टरवादी तत्वों से संबंध विच्छेद करने का मन नहीं बना पाए है। अब वे इन आतंकी संगठनों को कई श्रेणियों में बांट कर चल रहे हैं। पहली श्रेणी में वे संगठन हैं जो भारत, अमेरिका-नाटो सहित पाकिस्तानी सरकार और सेना के भी खिलाफ हैं। उनसे लड़ना तो पाकिस्तान सेना की मजबूरी है। दूसरी श्रेणी में वे आतंकी संगठन हैं जो भारत व अमेरिका के विरुद्ध हैं। पाकिस्तान की सेना कोशिश करती है कि इन आतंकी संगठनों से ज्यादा न लड़ा जाए। तीसरी श्रेणी में वे संगठन हैं जिन्होंने अब तक मुख्य रूप से भारत-विरोधी हिंसा ही की है। इनको पाकिस्तान की सेना का संरक्षण मिलता रहा और अमेरिका ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया। अभी कुछ सप्ताह पहले तक ही लश्करे तैयबा को इसी श्रेणी में रखा जाता था, पर मुंबई हमले में अमेरिकी नागरिकों की हत्या के बाद इस बारे में विचार बदला। अमेरिका व ब्रिटेन ने लश्कर के विरुद्ध भी दबाव बताया। पाकिस्तान सरकार ने भी लश्कर के विरुद्ध कुछ कार्रवाई की। सवाल यह है कि अमेरिका की घेराबंदी के चलते लश्कर व पाकिस्तानी सेना की मित्रता और कितने दिन तक निभेगी? इस पूरे घटनाक्रम का निष्कर्ष यह है कि पाकिस्तान अपनी सेना और कट्टरवादी आतंकियों के अनैतिक गठजोड़ के कारण गंभीर खतरे में फंस चुका है। इस अनैतिक नीति की तुलना में भारत ने अपनी सेना को पंथनिरपेक्ष रखने की जो राह अपनाई है वह पूरी तरह उचित व नैतिक है। हाल में कुछ हिंदू संगठनों ने एक गंभीर गलती यह की थी कि वे भी कुछ अवकाश प्राप्त सैनिकों की सहायता से हथियारों के प्रशिक्षण शिविर चलाने लगे। जरूरत इस बात की है कि इस गलती को स्वीकार कर इस अध्याय को आरंभिक स्थिति में ही समाप्त कर देना चाहिए। जो देशभक्त युवा आतंकवाद से लड़ने के लिए आगे आना चाहते हैं उन्हें किसी कट्टरवादी संगठन में न जाकर सीधे भारतीय सेना, सुरक्षा बलों व गुप्तचर संगठनों के कमांडो दस्तों से जुड़ना चाहिए। आतंकवादी विरोधी गुप्त कार्रवाइयां नैतिकता के आधार पर ऐसी होनी चाहिए जिसमें निर्दोष लोगों को नुकसान न पहुंचे। यह नैतिकता की कसौटी बहुत जरूरी है। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)hindu tigerhttp://www.blogger.com/profile/06085116912025834954noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9163350041696449025.post-29133758550812112322008-12-29T01:16:00.000-08:002008-12-29T01:18:05.221-08:00इजरायली हमले और तेजयरुशलम, प्रेट्र : इजरायल के लड़ाकू विमानों की गाजा पर बमबारी रविवार को भी जारी रही। वर्ष 1967 के बाद से क्षेत्र में अब तक के इस सबसे बड़े इजरायली हमले में करीब 300 फलस्तीनी मारे गए हैं। इजरायल के रक्षामंत्री एहुद बराक ने संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ की संघर्ष विराम की मांग खारिज कर दी है। इसके साथ ही उन्होंने हमास शासित क्षेत्र में हमले और तेज करने का ऐलान किया है। उधर, अरब देशों ने इस कार्रवाई की तीखी निंदा की है। गाजा के अस्पताल सूत्रों का कहना है कि इजरायल की इस कार्रवाई में अब तक करीब 300 लोग मारे गए हैं और घायलों की संख्या 800 के करीब पहुंच रही है। गाजा सीमा पर इजरायली सैनिकों के सैकड़ों दस्ते और टैंकों के जमावड़े से लगता है कि जल्द ही जमीनी अभियान भी शुरू हो सकता है। सूत्रों ने कहा कि एफ-16 विमानों ने रविवार को शिफा अस्पताल के करीब एक मस्जिद पर बमबारी की, जिसमें दो लोगों की मौत हो गई और मस्जिद ध्वस्त हो गई। इजरायली सेना का कहना है कि इस मस्जिद से ही आतंकी गतिविधियां संचालित होती थीं। इजरायली विमानों ने रविवार को हमास द्वारा इस्तेमाल होने वाले अल अक्सा टीवी स्टेशन समेत 20 लक्ष्यों को निशाना बनाया। इस हमले में टीवी स्टेशन के स्टूडियो की इमारत पूरी तरह ध्वस्त हो गई। इसके बावजूद मोबाइल यूनिट की मदद से यहां से प्रसारण जारी रहा। कैबिनेट की बैठक शुरू होने से पहले इजरायली रक्षा मंत्री ने कहा कि गाजा में हमले और तेज करने का जिक्र करते हुए कहा कि ऐसा करना बहुत जरूरी है। उधर, इजरायल की इस कार्रवाई की अरब जगत के देश एक सुर से निंदा कर रहे हैं। लेकिन, अमेरिका इजरायल का साथ दे रहा है। अमेरिका का कहना है कि हिंसा के लिए हमास जिम्मेदार है।hindu tigerhttp://www.blogger.com/profile/06085116912025834954noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9163350041696449025.post-77837559262942299012008-12-28T23:43:00.000-08:002008-12-29T00:46:32.007-08:00गाजा पट्टी पर इजरायली हमले जारी<span class="”fullpost”"><br />इजरायल की वायु सेना ने गाजा पट्टी में एक इस्लामिक विश्वविद्यालय और हमास के कार्यालय पर ताज़ा हवाई हमले किए हैं। इजरायली लड़ाकु विमानों ने लगातार गाजा पट्टी में जमकर बमबारी की। 1967 के बाद इजरायल की ओर से किया गया ये सबसे बड़ा हमला है जिसमें 286 फिलस्तीनी मारे गए हैं और 800 से भी ज्यादा घायल हुए हैं। इजरायल ने गाजा से हमास को उखाड़ फेंकने तक कार्रवाई जारी रखने की बात कही है। वहीं हमास ने भी बदला लेने की बात की है।<br /><br /><br />जहां एक ओर इजरायल द्वारा गाजा में हमास ठिकानों पर हवाई हमले जारी हैं वहीं इसके द्वारा जमीनी कार्रवाई की तैयारी की जा रही है। गाजा के अस्पताल बड़ी संख्या में मृतकों और घायलों की संख्या को देखते हुए संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं। आवश्यक जरूरी चीजों की कमी ने स्थिति को और विषम बना दिया है। इस बीच पश्चिम एशिया के विभिन्न शहरों में इन हमलों के विरोध में प्रदर्शन हुए हैं और फिलीस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने इस स्थिति के लिए हमास को भी जिम्मेदार ठहराया है।<br /><br />इजरायल का कहना है कि वो गाजा पट्टी से लगातार हो रहे हवाई हमलों को रोकने के लिए ज़मीनी कार्रवाई भी कर सकते हैं और ख़बरों के अनुसार इजरायल ने क़रीब साढे छह हज़ार रिज़र्व सैनिकों को काम पर बुलाया है।हवाई हमले अभी भी जारी हैं, जिनमें अब तक गाजा शहर की एक मस्जिद नष्ट हो गई है और दो व्यक्ति मारे गए हैं। इजरायल ने कहा है कि मस्जिद का इस्तेमाल आतंकवादी गतिविधियों के अड्डे के रूप में किया जाता था। इजरायल के प्रतिरक्षा मंत्री ने चेतावनी दी है कि आवश्यकतानुसार हमले बढ़ाए भी जा सकते हैं। थल सेना से हमला किये जाने की संभावना में अतिरिक्त सैनिक गाजा सीमा पर भेज दिए गए हैं ।हमस ने इन हमलों का बदला रौकेट और आत्मघाती हमलों से लेने का प्रण किया है। फ़िलिस्तीनी आतंकवादियो ने दक्षिणी इजरायल पर पचास से अधिक रौकेट दाग़े जिससे एक व्यक्ति मारा गया ।<br /><br />विदेश मंत्री ज़िपी लिवनी ने साफ़ कर दिया है कि इजरायल ये हमले आत्मरक्षा में कर रहा है और ये एक सफल अभियान की शुरुआत। इस्लामिक आतंकवादी गुट हमास के कई कार्यकर्ता इसी विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं। इससे पहले इजरायल ने दक्षिणी गाजा पट्टी में आपूर्ति सुरंगों को भी निशाना बनाया। इजरायल के अनुसार फिलिस्तिनी इस रास्ते के ज़रिए भोजन के अलावा हथियारों की तस्करी करते थे। राष्ट्रसंघ सुरक्षा परिषद ने इजरायल से गाजा पट्टी में चल रही हिंसा तत्काल रोकने का आह्वान किया है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने गजा पट्टी में सैन्य कार्रवाई तुरंत रोकने को कहा है।<br /><br />गाजा पर इजरायली हवाई हमलों में मरने वालों की संख्या बढ़ सकती है क्योंकि ध्वस्त इमारतों के मलवों के नीचे लोगों की दबे होने की आंशका है। गाजा पट्टी में रोक के कारण पहले से ही तंगी से जुझ रहे अस्पतालों के संसाधन घायलों के इलाज के लिए नाकाफी साबित हो रहे है जिनमें महिलाएं और बच्चें भी शामिल है। पयवेक्षकों का कहना है इजरायल और हमास के इस संघर्ष का असली शिकार गाजा का आम आदमी है और इसके हित में इस समस्या का राजनीतिक हल तत्काल खोजा जाना चाहिए।<br /><br />इजरायल के रक्षा मंत्री एहुद बराक ने चेतावनी दी है कि हवाई हमलों के बाद गजा पट्टी में जमीनी कार्रवाई भी हो सकती है। इन हमलों पर साझा दृष्टिकोण तय करने के लिए अरब देशों के विदेश मंत्रियों की आज काहिरा में आपात बैठक हो रही है। उधर गजा पट्टी पर इजरायली हमलों के विरोध में एक रैली आयोजित की गयी रैली को संबोधित करते हुए ईरानी संसद मजलिस के स्पीकर अली लरीजानी ने कहा है कि गाजा मुद्दे पर चर्चा के लिये एशियन पार्लियामेंट एसेंबली आपात बैठक करेगा।राष्ट्रसंघ सुरक्षा परिषद की बारी बारी से अध्यक्षता प्राप्त करने वाले देशों में इस बार के देश क्रोयशिया के राजदूत नेवेन जूरिका ने दोनों पक्षों से हिंसा समाप्त करने का आह्वान किया। इजरायली युद्धक विमानों ने गाजा आतंकवादी दल के चालीस से अधिक सैनिक प्रतिष्ठानों को नष्ट कर दिया था, साथ ही उस कैंपस पर भी हमला किया था जहां हमस द्वारा भर्ती किए गए नए जवानों का दीक्षांत समारोह चल रहा था</span>hindu tigerhttp://www.blogger.com/profile/06085116912025834954noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9163350041696449025.post-22882019958518515412008-12-22T04:55:00.000-08:002008-12-22T04:57:32.078-08:00अलकायदा का जेहादी बनाने का प्रशिक्षण जारी<span class="fullpost"> आतंकवादी संगठन अलकायदा किशोरों को लड़ाकू बनाने का प्रशिक्षण दे रहा एक वीडियो फिल्म में किशोरों के एक समूह को लड़ाकू वर्दियाँ पहने कसरत करते हुए दिखाया गया है। फिल्म में युवा रस्से पर चढ़ते हुए करकश आवाज में अमेरिका, इंग्लैंड और उसके सहयोगी देशों के विनाश और इन देशों पर हमले करने तथा वहाँ की सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाने वालों को पुरस्कृत करने की बात कर रहे हैं। पूरी फिल्म देखने के बावजूद यह पता नहीं चल सका कि इसे कहाँ फिल्माया गया।<br /><br />लड़ाकुओं की मदद करने का युवाओं से आग्रह करते हुए किशोर कह रहे हैं कि जेहादियों से अल्लाह खुश होगा। पीले, हरे रंग की वर्दी पहने ये युवा किस देश के हैं, यह पता नहीं चल सका है। हालाँकि ऐसी खबरें हैं कि आतंकवादी गतिविधियों में शरीक होने के लिए इंग्लैंड से लौटे ये युवा पाकिस्तान मूल के हैं और यार्कशायर क्षेत्र में जन्में और पले-बढ़े हैं।ऐसा माना जा रहा है कि तालिबान और अन्य सशस्त्र समूह जिनमें हिज्बे, इस्लामी तथा अलकायदा भी शामिल है, पाकिस्तान के आदिवासी इलाकों में पुनः संगठित तथा हथियारों से लैस हो रहे हैं। खुफिया रिपोर्ट के अनुसार ये आतंकी संगठन किशोरों को जेहाद के लिए भर्ती कर रहे हैं और इनका प्रशिक्षण अधिकतर मदरसों में हो रहा है।<br /><br />कई क्षेत्रों में मदरसे पब्लिक स्कूलों के विकल्प के रूप में संचालित होते हैं और जो लोग निजी स्कूलों का खर्च वहन नहीं कर पाते, वे अपने बच्चों को मदरसों में भेजते हैं। मदरसों में धार्मिक शिक्षा भी दी जाती है। रिपोर्ट बताती है कुछ मदरसों में युवाओं को धार्मिक कट्टरता की घुट्टी पिलायी जाती है। उनकी मनःस्थिति अपने मुताबिक बनाने के बाद उन्हें आतंकवाद का प्रशिक्षण दिया जाता है।एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तानी के कबाइली इलाकों से तालिबानी समर्थक 11 से 15 वर्ष तक की आयु के बच्चों को स्कूलों से ले जाते हैं और उन्हें अफगानिस्तान में फिदायीन बनने का प्रशिक्षण देते हैं। पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर सीमांत प्रांत के डेरा इस्माइल खाँ में एक किशोर के सितंबर 2007 में बम से खुद को उड़ा देने से 17 लोग मारे गए थे। इस्लामाबाद स्थित लाल मस्जिद में अनेक फिदायीन किशोरों को गिरफ्तार किया गया था। वे हथियारों का इस्तेमाल करते थे और उन्हें लाते एवं ले जाते थे। एक राष्ट्रीय बाल अधिकार संगठन ने जुलाई 2007 में बच्चों को आतंकवादी गतिविधियों के लिए तैयार करने पर गहरी चिंता व्यक्त की थी।<br /></span>hindu tigerhttp://www.blogger.com/profile/06085116912025834954noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9163350041696449025.post-43036313848752436132008-11-24T02:34:00.000-08:002008-12-22T04:51:58.525-08:00मेरे गुरू को अपमानित किया गया और मेरे ब्रह्मचर्य पर प्रश्न उठाये गये- साध्वी प्रज्ञा<span class="fullpost"> <br />मैं साध्वी प्रज्ञा चंद्रपाल सिंह ठाकुर, उम्र-38 साल, पेशा-कुछ नहीं, 7 गंगा सागर अपार्टमेन्ट, कटोदरा, सूरत,गुजरात राज्य की निवासी हूं जबकि मैं मूलतः मध्य प्रदेश की निवासिनी हूं. कुछ साल पहले हमारे अभिभावक सूरत आकर बस गये. पिछले कुछ सालों से मैं अनुभव कर रही हूं कि भौतिक जगत से मेरा कटाव होता जा रहा है. आध्यात्मिक जगत लगातार मुझे अपनी ओर आकर्षित कर रहा था. इसके कारण मैंने भौतिक जगत को अलविदा करने का निश्चय कर लिया और 30-01-2007 को संन्यासिन हो गयी. <p>जब से सन्यासिन हुई हूं मैं अपने जबलपुर वाले आश्रम से निवास कर रही हूं. आश्रम में मेरा अधिकांश समय ध्यान-साधना, योग, प्राणायम और आध्यात्मिक अध्ययन में ही बीतता था. आश्रम में टीवी इत्यादि देखने की मेरी कोई आदत नहीं है, यहां तक कि आश्रम में अखबार की कोई समुचित व्यवस्था भी नहीं है. आश्रम में रहने के दिनों को छोड़ दें तो बाकी समय मैं उत्तर भारत के ज्यादातर हिस्सों में धार्मिक प्रवचन और अन्य धार्मिक कार्यों को संपन्न कराने के लिए उत्तर भारत में यात्राएं करती हूं. 23-9-2008 से 4-10-2008 के दौरान मैं इंदौर में थी और यहां मैं अपने एक शिष्य अण्णाजी के घर रूकी थी. 4 अक्टूबर की शाम को मैं अपने आश्रम जबलपुर वापस आ गयी.</p><p>7-10-2008 को जब मैं अपने जबलपुर के आश्रम में थी तो शाम को महाराष्ट्र से एटीएस के एक पुलिस अधिकारी का फोन मेरे पास आया जिन्होंने अपना नाम सावंत बताया. वे मेरी एलएमएल फ्रीडम बाईक के बारे में जानना चाहते थे. मैंने उनसे कहा कि वह बाईक तो मैंने बहुत पहले बेच दी है. अब मेरा उस बाईक से कोई नाता नहीं है. फिर भी उन्होंने मुझे कहा कि अगर मैं सूरत आ जाऊं तो वे मुझसे कुछ पूछताछ करना चाहते हैं. मेरे लिए तुरंत आश्रम छोड़कर सूरत जाना संभव नहीं था इसलिए मैंने उन्हें कहा कि हो सके तो आप ही जबलपुर आश्रम आ जाईये, आपको जो कुछ पूछताछ करनी है कर लीजिए. लेकिन उन्होंने जबलपुर आने से मना कर दिया और कहा कि जितनी जल्दी हो आप सूरत आ जाईये. फिर मैंने ही सूरत जाने का निश्चय किया और ट्रेन से उज्जैन के रास्ते 10-10-2008 को सुबह सूरत पहुंच गयी. रेलवे स्टेशन पर भीमाभाई पसरीचा मुझे लेने आये थे. उनके साथ मैं उनके निवासस्थान एटाप नगर चली गयी.</p><p>यहीं पर सुबह के कोई 10 बजे मेरी सावंत से मुलाकात हुई जो एलएमएल बाईक की खोज करते हुए पहले से ही सूरत में थे. सावंत से मैंने पूछा कि मेरी बाईक के साथ क्या हुआ और उस बाईक के बारे में आप पडताल क्यों कर रहे हैं? श्रीमान सावंत ने मुझे बताया कि पिछले सप्ताह सितंबर में मालेगांव में जो विस्फोट हुआ है उसमें वही बाईक इस्तेमाल की गयी है. यह मेरे लिए भी बिल्कुल नयी जानकारी थी कि मेरी बाईक का इस्तेमाल मालेगांव धमाकों में किया गया है. यह सुनकर मैं सन्न रह गयी. मैंने सावंत को कहा कि आप जिस एलएमएल फ्रीडम बाईक की बात कर रहे हैं उसका रंग और नंबर वही है जिसे मैंने कुछ साल पहले बेच दिया था. </p><p>सूरत में सावंत से बातचीत में ही मैंने उन्हें बता दिया था कि वह एलएमएल फ्रीडम बाईक मैंने अक्टूबर 2004 में ही मध्यप्रदेश के श्रीमान जोशी को 24 हजार में बेच दी थी. उसी महीने में मैंने आरटीओ के तहत जरूरी कागजात (टीटी फार्म) पर हस्ताक्षर करके बाईक की लेन-देन पूरी कर दी थी. मैंने साफ तौर पर सावंत को कह दिया था कि अक्टूबर 2004 के बाद से मेरा उस बाईक पर कोई अधिकार नहीं रह गया था. उसका कौन इस्तेमाल कर रहा है इससे भी मेरा कोई मतलब नहीं था. लेकिन सावंत ने कहा कि वे मेरी बात पर विश्वास नहीं कर सकते. इसलिए मुझे उनके साथ मुंबई जाना पड़ेगा ताकि वे और एटीएस के उनके अन्य साथी इस बारे में और पूछताछ कर सकें. पूछताछ के बाद मैं आश्रम आने के लिए आजाद हूं.</p><p>यहां यह ध्यान देने की बात है कि सीधे तौर पर मुझे 10-10-2008 को गिरफ्तार नहीं किया गया. मुंबई में पूछताछ के लिए ले जाने की बाबत मुझे कोई सम्मन भी नहीं दिया गया. जबकि मैं चाहती तो मैं सावंत को अपने आश्रम ही आकर पूछताछ करने के लिए मजबूर कर सकती थी क्योंकि एक नागरिक के नाते यह मेरा अधिकार है. लेकिन मैंने सावंत पर विश्वास किया और उनके साथ बातचीत के दौरान मैंने कुछ नहीं छिपाया. मैं सावंत के साथ मुंबई जाने के लिए तैयार हो गयी. सावंत ने कहा कि मैं अपने पिता से भी कहूं कि वे मेरे साथ मुंबई चलें. मैंने सावंत से कहा कि उनकी बढ़ती उम्र को देखते हुए उनको साथ लेकर चलना ठीक नहीं होगा. इसकी बजाय मैंने भीमाभाई को साथ लेकर चलने के लिए कहा जिनके घर में एटीएस मुझसे पूछताछ कर रही थी.</p><p>शाम को 5.15 मिनट पर मैं, सावंत और भीमाभाई सूरत से मुंबई के लिए चल पड़े. 10 अक्टूबर को ही देर रात हम लोग मुंबई पहुंच गये. मुझे सीधे कालाचौकी स्थित एटीएस के आफिस ले जाया गया था. इसके बाद अगले दो दिनों तक एटीएस की टीम मुझसे पूछताछ करती रही. उनके सारे सवाल 29-9-2008 को मालेगांव में हुए विस्फोट के इर्द-गिर्द ही घूम रहे थे. मैं उनके हर सवाल का सही और सीधा जवाब दे रही थी. </p><p>अक्टूबर को एटीएस ने अपनी पूछताछ का रास्ता बदल दिया. अब उसने उग्र होकर पूछताछ करना शुरू किया. पहले उन्होंने मेरे शिष्य भीमाभाई पसरीचा (जिन्हें मैं सूरत से अपने साथ लाई थी) से कहा कि वह मुझे बेल्ट और डंडे से मेरी हथेलियों, माथे और तलुओं पर प्रहार करे. जब पसरीचा ने ऐसा करने से मना किया तो एटीएस ने पहले उसको मारा-पीटा. आखिरकार वह एटीएस के कहने पर मेरे ऊपर प्रहार करने लगा. कुछ भी हो, वह मेरा शिष्य है और कोई शिष्य अपने गुरू को चोट नहीं पहुंचा सकता. इसलिए प्रहार करते वक्त भी वह इस बात का ध्यान रख रहा था कि मुझे कोई चोट न लग जाए. इसके बाद खानविलकर ने उसको किनारे धकेल दिया और बेल्ट से खुद मेरे हाथों, हथेलियों, पैरों, तलुओं पर प्रहार करने लगा. मेरे शरीर के हिस्सों में अभी भी सूजन मौजूद है.</p><p>13 तारीख तक मेरे साथ सुबह, दोपहर और रात में भी मारपीट की गयी. दो बार ऐसा हुआ कि भोर में चार बजे मुझे जगाकर मालेगांव विस्फोट के बारे में मुझसे पूछताछ की गयी. भोर में पूछताछ के दौरान एक मूछवाले आदमी ने मेरे साथ मारपीट की जिसे मैं अभी भी पहचान सकती हूं. इस दौरान एटीएस के लोगों ने मेरे साथ बातचीत में बहुत भद्दी भाषा का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. मेरे गुरू का अपमान किया गया और मेरी पवित्रता पर सवाल किये गये. मुझे इतना परेशान किया गया कि मुझे लगा कि मेरे सामने आत्महत्या करने के अलावा अब कोई रास्ता नहीं बचा है. </p><p>14 अक्टूबर को सुबह मुझे कुछ जांच के लिए एटीएस कार्यालय से काफी दूर ले जाया गया जहां से दोपहर में मेरी वापसी हुई. उस दिन मेरी पसरीचा से कोई मुलाकात नहीं हुई. मुझे यह भी पता नहीं था कि वे (पसरीचा) कहां है. 15 अक्टूबर को दोपहर बाद मुझे और पसरीचा को एटीएस के वाहनों में नागपाड़ा स्थित राजदूत होटल ले जाया गया जहां कमरा नंबर 315 और 314 में हमे क्रमशः बंद कर दिया गया. यहां होटल में हमने कोई पैसा जमा नहीं कराया और न ही यहां ठहरने के लिए कोई खानापूर्ति की. सारा काम एटीएस के लोगों ने ही किया. </p><p>मुझे होटल में रखने के बाद एटीएस के लोगों ने मुझे एक मोबाईल फोन दिया जिसका नंबर था- 9406600004. एटीएस ने मुझे इसी फोन से अपने कुछ रिश्तेदारों और शिष्यों (जिसमें मेरी एक महिला शिष्य भी शामिल थी) को फोन करने के लिए कहा और कहा कि मैं फोन करके लोगों को बताऊं कि मैं एक होटल में रूकी हूं और सकुशल हूं. मैंने उनसे पहली बार यह पूछा कि आप मुझसे यह सब क्यों कहलाना चाह रहे हैं. समय आनेपर मैं उस महिला शिष्य का नाम भी सार्वजनिक कर दूंगी.</p><p>एटीएस की इस प्रताड़ना के बाद मेरे पेट और किडनी में दर्द शुरू हो गया. मुझे भूख लगनी बंद हो गयी. मेरी हालत बिगड़ रही थी. होटल राजदूत में लाने के कुछ ही घण्टे बाद मुझे एक अस्पताल में भर्ती करा दिया गया जिसका नाम सुश्रुसा हास्पिटल था. मुझे आईसीयू में रखा गया. इसके आधे घण्टे के अंदर ही भीमाभाई पसरीचा भी अस्पताल में लाये गये और मेरे लिए जो कुछ जरूरी कागजी कार्यवाही थी वह एटीएस ने भीमाभाई से पूरी करवाई. जैसा कि भीमाभाई ने मुझे बताया कि श्रीमान खानविलकर ने हास्पिटल में पैसे जमा करवाये. इसके बाद पसरीचा को एटीएस वहां से लेकर चली गयी जिसके बाद से मेरा उनसे किसी प्रकार का कोई संपर्क नहीं हो पाया है. </p><p>इस अस्पताल में कोई 3-4 दिन मेरा इलाज किया गया. यहां मेरी स्थिति में कोई सुधार नहीं हो रहा था तो मुझे यहां से एक अन्य अस्पताल में ले जाया गया जिसका नाम मुझे याद नहीं है. यह एक ऊंची ईमारत वाला अस्पताल था जहां दो-तीन दिन मेरा ईलाज किया गया. इस दौरान मेरे साथ कोई महिला पुलिसकर्मी नहीं रखी गयी. न ही होटल राजदूत में और न ही इन दोनो अस्पतालों में. होटल राजदूत और दोनों अस्पताल में मुझे स्ट्रेचर पर लाया गया, इस दौरान मेरे चेहरे को एक काले कपड़े से ढंककर रखा गया. दूसरे अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद मुझे फिर एटीएस के आफिस कालाचौकी लाया गया. </p><p>इसके बाद 23-10-2008 को मुझे गिरफ्तार किया गया. गिरफ्तारी के अगले दिन 24-10-2008 को मुझे मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, नासिक की कोर्ट में प्रस्तुत किया गया जहां मुझे 3-11-2008 तक पुलिस कस्टडी में रखने का आदेश हुआ. 24 तारीख तक मुझे वकील तो छोड़िये अपने परिवारवालों से भी मिलने की इजाजत नहीं दी गयी. मुझे बिना कानूनी रूप से गिरफ्तार किये ही 23-10-2008 के पहले ही पालीग्रैफिक टेस्ट किया गया. इसके बाद 1-11-2008 को दूसरा पालिग्राफिक टेस्ट किया गया. इसी के साथ मेरा नार्को टेस्ट भी किया गया.</p><p>मैं कहना चाहती हूं कि मेरा लाई डिटेक्टर टेस्ट और नार्को एनेल्सिस टेस्ट बिना मेरी अनुमति के किये गये. सभी परीक्षणों के बाद भी मालेगांव विस्फोट में मेरे शामिल होने का कोई सबूत नहीं मिल रहा था. आखिरकार 2 नवंबर को मुझे मेरी बहन प्रतिभा भगवान झा से मिलने की इजाजत दी गयी. मेरी बहन अपने साथ वकालतनामा लेकर आयी थी जो उसने और उसके पति ने वकील गणेश सोवानी से तैयार करवाया था. हम लोग कोई निजी बातचीत नहीं कर पाये क्योंकि एटीएस को लोग मेरी बातचीत सुन रहे थे. आखिरकार 3 नवंबर को ही सम्माननीय अदालत के कोर्ट रूम में मैं चार-पांच मिनट के लिए अपने वकील गणेश सोवानी से मिल पायी. </p><p>10 अक्टूबर के बाद से लगातार मेरे साथ जो कुछ किया गया उसे अपने वकील को मैं चार-पांच मिनट में ही कैसे बता पाती? इसलिए हाथ से लिखकर माननीय अदालत को मेरा जो बयान दिया था उसमें विस्तार से पूरी बात नहीं आ सकी. इसके बाद 11 नवंबर को भायखला जेल में एक महिला कांस्टेबल की मौजूदगी में मुझे अपने वकील गणेश सोवानी से एक बार फिर 4-5 मिनट के लिए मिलने का मौका दिया गया. इसके अगले दिन 13 नवंबर को मुझे फिर से 8-10 मिनट के लिए वकील से मिलने की इजाजत दी गयी. इसके बाद शुक्रवार 14 नवंबर को शाम 4.30 मिनट पर मुझे मेरे वकील से बात करने के लिए 20 मिनट का वक्त दिया गया जिसमें मैंने अपने साथ हुई सारी घटनाएं सिलसिलेवार उन्हें बताई, जिसे यहां प्रस्तुत किया गया है. </p><p>(मालेगांव बमकांड के संदेह में गिरफ्तार साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर द्वारा नासिक कोर्ट में दिये गये शपथपत्र पर आधारित.</p><p></span> by <a href="http://lokmanch.com">lokmanch</a><br /></p>hindu tigerhttp://www.blogger.com/profile/06085116912025834954noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-9163350041696449025.post-63744830275891451982008-11-21T01:30:00.000-08:002008-11-21T01:34:30.357-08:00खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे<p>पिछले काफी समय से कांग्रेसी, वामपंथी और सत्ता में उनके साथी इस जुगाड़ में थे कि उनके मुख से आतंकवादियों के समर्थक और उनके प्रति नरम रुख अपनाने का कलंक कैसे मिटे ? २९ सितम्बर को हुए मालेगांव कांड में कुछ हिन्दू क्या पकड़े गये, उन्होंने इस आरोप के घेरे में सम्पूर्ण संघ परिवार को ले लिया है।</p> <p>सच तो यह है कि गत पांच साल के कांग्रेस और वामपंथियों के शासन में सैकड़ों विस्फोट हुए; पर एक भी अपराधी को सजा नहीं दी जा सकी। सिमी, इंडियन मुजाहिदीन आदि मुस्लिम आतंकी गिरोहों के सैकड़ों लोग पकड़े गये हैं; पर इन पर कार्यवाही होना तो दूर, अपनी जान गंवाकर इन्हें पकड़ने वालों पर ही संदेह किया जा रहा है। लालू, मुलायम, ममता, शिवराज पाटिल, रामविलास आदि भूलते हैं कि वे इन सुरक्षाकर्मियों के कारण ही सुरक्षित हैं। इसके बाद भी इन पर झूठे आरोप लगा रहे हैं।</p><p>मुस्लिम वोट के लालच में आतंकियों के समर्थन का अगला चरण है हिन्दू संस्थाओं को कोसना। हर भगवा वेशधारी उन्हें कूपमंडूक और देशद्रोही नजर आता है। हिन्दू की बात बोलने वाला हर संगठन उन्हें भारत को मुस्लिम और ईसाई देश बनाने की राह में बाधा लगता है। इसलिए उन्हें गाली दिये बिना उनका खाना हजम नहीं होता। ये हिटलर के प्रचार मंत्री गोयबल्स के कलियुगी चेले हैं। उसका मत था कि यदि झूठ को सौ बार बोलें, तो वह सच हो जाता है। उसकी दूसरी मान्यता यह थी कि झूठ इतना बड़ा बोलो कि घोर विरोधी भी उसका दस-बीस प्रतिशत तो सच मान ही ले।</p><p>उनका यह रवैया सदा से रहा है। गांधी जी के हत्यारे नाथूराम ने स्पष्ट कहा था कि यह काम उसने अपनी इच्छा से किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का इसमें कोई हाथ नहीं है। न्यायालय ने भी संघ को निर्दोष पाया, नेहरू सरकार ने ही संघ से प्रतिबंध हटाया, फिर भी आज तक संघ को उस हत्याकांड में घसीटा जाता है। कई लोगों को इस कारण न्यायालय में माफी मांगनी पड़ी है, फिर भी वे अपने झूठ पर डटे हैं। यही हाल उड़ीसा में आस्टे्रलिया के पादरी ग्राहम स्टेंस के साथ हुआ। उसके हत्यारोपी दारासिंह ने न्यायालय में यह स्वीकार किया कि उसका बजरंग दल से कोई संबंध नहीं है; पर यह झूठ भी आज तक संघ परिवार पर चिपका हुआ है।</p><p>जहां तक किसी संस्था का हिंसक होने या न होने का संबंध है, उसे निम्न कुछ कसौटियों पर कसा जा सकता है।</p><p>१. क्या उसके अधिकृत साहित्य में हिंसा को उचित बताया है ?</p><p>२. क्या उसकी गतिविधियां गुप्त हैं ?</p><p>३. क्या किसी स्थान पर हुई हिंसा के लिए उसके किसी पदाधिकारी ने निर्देश जारी किया ?</p><p>४. क्या हिंसा के लिए उस संस्था ने प्रशिक्षण दिया ?</p><p>५. क्या संस्था ने शस्त्र या विस्फोटक सामग्री उपलब्ध करायी ?</p><p>६. क्या संस्था ने हिंसा या विस्फोट के बाद उसकी जिम्मेदारी ली ?</p><p>७. क्या संस्था ने अपराधियों को छिपने या भागने में सहयोग दिया ?</p><p>८. क्या संस्था ने मुकदमे में अपराधियों को कानूनी सहायता उपलब्ध करायी ?</p><p>ऐसी अनेक कसौटियां हैं, जिनके आधार पर इन आतंकी घटनाओं के बाद उन संस्थाओं को परखा जा सकता है। इस दृष्टिकोण से संघ परिवार की संस्थाओं पर निगाह डालें, तो ध्यान में आएगा कि</p><p>१. संघ की शाखाएं खुले मैदान में लगती हैं, जिसमें कोई भी हिन्दू आ सकता है।</p><p>२. संघ और उसके समविचारी संगठनों के कार्यक्रम प्राय: सार्वजनिक होते हैं, जिनके निमन्त्रण पत्र छपते हैं।</p><p>३. संघ परिवार की संस्थाओं के प्रशिक्षण शिविर गुप्त नहीं होते। उनके उद्घाटन और समापन पर समाज के प्रतिष्ठित लोगों तथा पत्रकारों को बुलाया जाता है। उसमें पारित प्रस्ताव पत्रकारों को उपलब्ध कराये जाते हैं। इन संस्थाओं का विस्तृत ब्यौरा इनके द्वारा प्रकाशित पुस्तकों में उपलब्ध है, जिन्हें कोई भी खरीद सकता है।</p><p>४. बजरंग दल या दुर्गा वाहिनी जैसे युवा संगठनों के शिविर में एयर गन से निशानेबाजी सिखायी जाती है। यह अपराध नहीं है। भारत के हर नगर और गांवों के मेलों में ऐसी दुकानें लगती हैं।</p><p>५. अभी तक की जानकारी के अनुसार विद्यार्थी परिषद या बजरंग दल ने किसी हिंसक घटना की जिम्मेदारी नहीं ली। किसी को इसके लिए सामान उपलब्ध नहीं कराया, किसी की छिपने या भागने में सहायता नहीं की तथा किसी अपराधी को कानूनी संरक्षण नहीं दिया। </p><p>दूसरी ओर सिमी, इंडियन मुजाहिदीन जैसे मुस्लिम या माओवादी कम्युनिस्ट गिरोहों पर निगाह डालें, तो यह परिदृश्य नजर आता है।</p><p>१. इन संस्थाओं का सारा काम गुप्त रूप से होता है।</p><p>२. हर विस्फोट या आतंकी घटना के पहले और बाद में ये पुलिस को फोनकर उसकी जिम्मेवारी लेते हैं।</p><p>३. आंतकियों को गुप्त प्रशिक्षण और सामग्री देने से लेकर भागने, छिपने और पकड़े जाने पर कानूनी सहायता देने में ये आगे रहते हैं।</p><p>मालेगांव कांड में कुछ हिन्दुओं की गिरफ्तारी के बाद मुस्लिम वोटों के लालची नेता और गोयबल्स के चेले संघ, विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद पर आरोप लगाने लगे हैं। इनकी शह पर नासिक में विश्व हिन्दू परिषद और विद्यार्थी परिषद के कार्यालय पर हमले भी किये गये हैं। वे यह भूलते हैं कि सार्वजनिक संगठनों से लाखों लोग जुड़ते हैं; पर उनके हर काम का जिम्मेदार वह संगठन नहीं होता। </p><p>कानपुर में दो युवकों की बम बनाते हुए मृत्यु हुई। कहते हैं कि उनमें से एक सालों पहले बजरंग दल से सम्बद्ध था। तो क्या पूरे बजरंग दल को आरोपी मान लें ? मालेगांव कांड में प्रज्ञा सिंह को संदेह के आधार पर पकड़ा गया है। वह छात्र जीवन में विद्यार्थी परिषद के सम्पर्क में रही होगी। तो क्या पूरे विद्यार्थी परिषद को कटघरे में खड़ा कर दें ? चोरी, डकैती आदि के आरोप में गिरफ्तार लोग कांग्रेस, सपा, बसपा या अन्य किसी दल के समर्थक होते हैं, तो क्या इस आधार पर पूरे दल को अपराधी मान लिया जाएगा ? क्या अपराधी का किसी राजनीतिक दल के नेता के साथ चित्र खिंचवा लेने मात्र से उन नेता को भी अपराधी मान लिया जाएगा ? इस प्रश्न का उत्तर इनमें से किसी के पास नहीं है।</p><p>हिन्दू संस्थाओं को झूठे संदेह के आधार पर गरियाना और मुस्लिम, ईसाई या हिंसक कम्युनिस्ट गिरोहों को पुष्ट प्रमाणों के बाद भी कुछ न कहना कहां का न्याय है ? उड़ीसा पुलिस को वह कार्यवाही पुस्तक मिली है, जिसमें स्वामी लक्ष्मणानंद की हत्या के लिए २३ अगस्त २००८ की तारीख तय की गयी थी। साप्ताहिक पांचजन्य तथा अनेक पत्रों में यह प्रकाशित हुआ हैं; पर इस बारे में केन्द्र शासन, ईसाई संस्थाएं और उनके विदेशी आका मौन हैं।</p><p>केरल, बंगाल और त्रिपुरा में कम्यूनिस्टों द्वारा प्राय: हिन्दू कार्यकर्ताओं की हत्या की जाती है; माओवादी और नक्सली कम्यूनिस्ट देश के अनेक भागों में हिंसक कार्यवाहियों में लिप्त हैं। प्रमाण होने पर भी इस बारे में कुछ नहीं होता। क्या सिर्फ इसलिए कि इनका सत्ता दल को समर्थन प्राप्त है और संघ परिवार के संगठन किसी राजनीतिक दल, यहां तक कि भाजपा की भी जेब में रहना पसंद नहीं करते।</p><p>इन सेकुलरों को शायद यह नहीं पता कि आम हिन्दू भारत को अपनी मातृभूमि मानता है। अपवाद सब जगह होते हैं; पर वह इस देश को हानि पहुंचाने की बात सपने में भी नहीं सोच सकता, जबकि अन्य मजहबी गिरोहों के साथ ऐसा नहीं है। ऐसे में दोनों को तराजू के एक पलड़े में रखना अनुचित है। फिर जिन लोगों या संगठनों को अपना काम हर ओर फैलाना है, वे गुप्त रूप से काम नहीं कर सकते। </p><p>आजादी के लिए क्रांतिकारियों और गांधी जी ने अलग-अलग तरह से काम किया। गुप्त गतिविधियों के कारण क्रांतिकारियों को जनता का सहयोग बहुत कम मिला, जबकि गांधी जी के आंदोलन सार्वजनिक होने से जनता उनमें उमड़ पड़ती थी। संघ भी अपने विचार को सैकड़ों संस्थाओं के माध्यम से जन-जन तक पहुंचा रहा है, ऐसे में वह गुप्त गतिविधि कर ही नहीं सकता।</p>सारे परिदृश्य को देखने से यह साफ नजर आता है कि केन्द्र शासन में असली आतंकी गिरोहों के प्रति कठोर कार्यवाही करने का न साहस है और न इच्छा शक्ति। वे आम जनता का ध्यान अपनी असफलता से हटाने के लिए हिन्दू संस्थाओं को घेर रहे हैं। यदि प्रज्ञा और उनके कुछ साथी अपराधी हैं, तो उनके विरुद्ध कठोर कार्यवाही होनी ही चाहिए। नि:संदेह उसने भगवा वस्त्र की गरिमा को ठेस पहुंचाई है; पर इसके बहाने देशभक्त हिन्दू संगठनों के विरुद्ध शोर मचाना 'खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे` ही कहा जाएगा।<br />by <a href="http://lokmanch.com"><span>लोकमंच</span></a>hindu tigerhttp://www.blogger.com/profile/06085116912025834954noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-9163350041696449025.post-6876139133650381312008-11-13T22:02:00.000-08:002008-11-13T22:03:21.960-08:00संत आहत, कहा कांग्रेस भुगतेगी खामियाजामालेगांव विस्फोट की असलियत आज नहीं तो कल सामने आ ही जाएगी। लेकिन इस मामले में पहले साध्वी प्रज्ञा भारती और फिर पीठाधीश्र्वर स्वामी अमृतानंद की गिरफ्तारी से संतों को गहरा सदमा लगा है। संत इसे कांग्रेस द्वारा मुसलमानों को खुश करने का चुनावी हथकंडा मानते हैं। जिसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ेगा। पूरे मामले के विरोध में 15 नवंबर को अयोध्या समेत देशभर में संत सभाएं होने जा रही हैं। इसमें हिंदुओं से संगठित होने का आह्वान किया जाएगा। राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपालदास का कहना है कि जब-जब चुनाव आते हैं, मुस्लिम वोट लोलुप दल कुर्सी बचाने के लिए घटिया हथकंडे अपनाने लगते हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि शांत रहने वाले हिंदू इन सियासी साजिशों के खिलाफ यदि जाग उठे, तो देश को संभालना कठिन हो जाएगा। हरिद्वार के परमार्थ निकेतन आश्रम के अध्यक्ष स्वामी चिन्मयानंद का कहना है कि मुस्लिम वोटों के लालच में कांग्रेस देश में विभाजन से पहले जैसे हालात पैदा कर रही है। एक और विभाजन की पृष्ठभूमि तैयार की जा रही है। विस्फोट मामले से संतों को जोड़ना मुस्लिम आतंकवाद पर पर्दा डालने की घटिया साजिश है। इसका मुंहतोड़ जवाब देने के लिए संत-धर्माचार्य 15 नवंबर को दिल्ली में एकत्र हो रहे हैं। साध्वी निरंजन ज्योति ने कहा कि जो लोग हिंदुओं की रक्षा में लगे हैं, उन्हें चुन-चुनकर निशाना बनाया जा रहा है, ताकि मुसलमान खुश हो जाएं।hindu tigerhttp://www.blogger.com/profile/06085116912025834954noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9163350041696449025.post-87962931562373353182008-11-13T22:01:00.001-08:002008-11-13T22:01:48.528-08:00साध्वी प्रज्ञा के समर्थन में साध्वी दिव्या गिरिमालेगाँव विस्फोट मामले की मुख्य आरोपी साध्वी प्रज्ञासिंह की मुसीबत की घड़ी में उनकी एक पुरानी संगिनी साध्वी दिव्या गिरि ने भी उनके समर्थन में आवाज उठाई है।प्रज्ञा की गुरु भगिनी और लखनऊ के प्रतिष्ठित मनकामेश्वर शिव मंदिर की पहली महिला महंत साध्वी दिव्या गिरि ने उनके साथ सहानुभूति जताते हुए कहा कि प्रज्ञा को नाहक प्रताड़ित किया जा रहा है। <p>साध्वी दिव्या गिरि ने कहा कि आतंकवाद का कोई चेहरा नहीं होता। यदि कोई आतंकवाद का रास्ता पकड़ता है तो सबसे पहले उन कारणों का पता लगाया जाना चाहिए, जिनके चलते कोई इस रास्ते पर चलने को प्रेरित होता है और उसके बाद उन कारणों को दूर करने की ईमानदार कोशिश होनी चाहिए।उन्होंने कहा कि आतंकवाद जैसे मसलों पर राजनीतिक लाभ लेने की कोशिशों के बजाय इनके पीछे के कारणों को दूर करने का प्रयास होना चाहिए। </p><p>वर्ष 2004 में उज्जैन में साध्वी प्रज्ञासिंह के साथ ही दीक्षा ग्रहण करने वाली साध्वी दिव्या गिरि ने कहा कि हालाँकि उनका साथ कोई बहुत लंबे दिनों तक नहीं रहा, मगर वे विश्वासपूर्वक यह कह सकती हैं कि साध्वी प्रज्ञासिंह बहुत ही विनम्र और जमीन से जुड़ी हुई हैं। वे किसी आतंकवादी घटना से जुड़ी हो सकती हैं, यह विश्वास कर पाना कठिन है। </p><p> </p>hindu tigerhttp://www.blogger.com/profile/06085116912025834954noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9163350041696449025.post-33339445459126848502008-11-13T21:32:00.000-08:002008-11-13T21:43:26.217-08:00जांच के नाम पर जलालतजांच के नाम पर जलालत विश्व हिंदू मानस के समक्ष आत्मनिरीक्षण की चुनौती है। हिंदू अपनी मातृभूमि में ही आतंकी बताए जा रहे हैं। साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और मालेगांव सिर्फ बहाना हैं, समूचा हिंदू दर्शन और हिंदुत्व ही निशाना है। प्रज्ञा सिंह के नार्को परीक्षण जैसे ढेर सारे मेडिकल टेस्ट हो चुके हैं। महाराष्ट्र की एटीएस कोई पुख्ता सबूत नहीं जुटा सकी। अंतरराष्ट्रीय ख्याति के योगाचार्य रामदेव ने ऐसे तमाम परीक्षणों पर ऐतराज जताया है। संविधान प्रदत्त व्यक्ति के मौलिक अधिकार अनुच्छेद 20(3) के अनुसार किसी अपराध के लिए आरोपित किसी व्यक्ति को स्वयं अपने खिलाफ बयान देने (साक्षी होने) के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, लेकिन प्रज्ञा को विविध परीक्षणों के जरिए स्वयं अपने ही विरुद्ध साक्ष्य के लिए विवश किया जा रहा है। बेशक मालेगांव घटना की गहन जांच होनी चाहिए। कानूनी तंत्र को दबावमुक्त होकर अपना कर्तव्य निभाना चाहिए। राष्ट्रद्रोह असामान्य अपराध है, लेकिन एटीएस की अब तक संपन्न जांच ने कई आधारभूत सवाल भी उठाए हैं, मसलन एटीएस की गोपनीय पूछताछ भी नियमित रूप से प्रेस को क्यों पहुंचाई जा रही है? क्या पूछताछ का उद्देश्य महज प्रचार ंहै और यही सिद्ध करना है कि हिंदू संगठन भी आतंकी होते हैं? एटीएस सही दिशा में है तो कोई पुख्ता सबूत क्यों नहीं है? एटीएस ने अभिनव भारत नाम की एक संस्था का पता लगाया है? अभिनव भारत वीर सावरकर की संस्था थी। मदनलाल धींगरा भी इसके सदस्य थे। उन्होंने अंग्रेज अफसर डब्लूएच कर्जन को मारा था। यह भारतीय स्वाधीनता संग्राम था। धींगरा स्वाधीनता संग्राम के हीरो बने। देश आजाद हुआ, सावरकर ने यह कहकर अभिनव भारत की समाप्ति की घोषणा की कि स्वाधीन भारत में सशस्त्र युद्ध की कोई जरूरत नहीं है। एटीएस द्वारा खोजी गई नई अभिनव भारत जून 2006 में बनी। वेबसाइट के अनुसार संस्था का लक्ष्य है स्वराज्य, सुराज्य, सुरक्षा और सुशांति। सेवानिवृत्त मेजर रमेश उपाध्याय अध्यक्ष हैं। एटीएस का आरोप है कि प्रज्ञा सिंह इन्हीं उपाध्याय के संपर्क में आई। संपर्क दर संपर्क ही एटीएस का आधार है। कह सकते हैं कि एटीएस के पास फिलहाल सूत्र ही हैं, सबूत नहीं। बावजूद इसके हिंदू आतंकवाद का हौव्वा है। हिंदू आतंकवाद नई सेकुलर गाली है। क्या हिंदू आतंकी हो सकते हैं? आरोपों-प्रत्यारोपों की बातें दीगर हैं, इस लिहाज से तो महान राष्ट्रभक्त सरदार पटेल भी आतंकी घोषित हो चुके हैं, सेकुलर दलों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। जिहादी आतंकवाद के लक्ष्य सुस्पष्ट हैं। वे शरीय कानूनों वाला देश चाहते हैं। आतंकी हमलों का श्रेय लेते हैं और पकड़े जाने पर बेखौफ अपना मकसद बताते हैं। प्रज्ञा या उपाध्याय और अभिनव भारत ने क्या ऐसा कोई उद्देश्य घोषित किया है? हिंदू हजारों बरस पहले ऋग्वैदिक काल से ही जनतंत्री हैं। यहां ईश्वर को भी खारिज करने वाले चार्वाक ऋषि हैं, हिंदू समाज की आक्रामक शल्य परीक्षा करने वाले डा.अंबेडकर भारत रत्न हैं। हिंदू संविधान मानते हैं, राष्ट्रध्वज देखकर रोमांचित होते हैं। हिंदू इस देश को पुण्यभूमि, पितृभूमि मानते हैं, यहां हिंसा होगी तो वे जाएंगे कहां? हिंदू अपने ही राष्ट्रीय समाज के विरुद्ध युद्धरत नहीं हो सकते। हिंदू जन्मजात राष्ट्रवादी हैं। सारी दुनिया का राष्ट्रभाव मात्र पांच-छह सौ बरस ही पुराना है, भारतीय राष्ट्रभाव कम से कम 8-10 हजार वर्ष पूर्व वैदिक साहित्य में भी है। हिंदू अपने ही हिंदु-स्थान को रक्तरंजित नहीं कर सकते। तब प्रश्न यह है कि प्रज्ञा सिंह या उपाध्याय पर लगे आरोपों का राज क्या है? अव्वल तो इस प्रश्न का सटीक उत्तर जांच और विवेचना की अंतिम परिणति और न्यायालय ही देंगे कि वे दोषी हैं या निर्दोष, लेकिन एटीएस की प्रचारात्मक कार्यशैली से राजनीतिक षड्यंत्र की गंध आ रही है। दु:ख है कि विद्वान प्रधानमंत्री को आस्ट्रेलियाई पुलिस द्वारा की गई एक मुस्लिम युवक की गिरफ्तारी के कारण पूरी रात नींद नहीं आई, लेकिन बिना सबूत प्रज्ञा और सेना से जुड़े सदस्यों के उत्पीड़न के बावजूद वह खामोश हैं। प्रज्ञा का दोषी होना समूची हिंदू चेतना और भारतीय राष्ट्र-राज्य व राजनीति के लिए भूकंपकारी सिद्ध होगा। चूंकि प्रज्ञा बिना किसी साक्ष्य के बावजूद पीडि़त है इसलिए राजनीति और सरकार से आहत, अपमान झेल रहे करोड़ों हिंदुओं की महानायक बन चुकी है। हिंदू मन स्वाभाविक रूप से आक्रामक नहीं होता। हिंदू ही क्या, कोई भी सांस्कृतिक और सभ्य कौम हमलावर नहीं होती,पर अपमान सहने की सीमा होती है। प्रधानमंत्री राष्ट्रीय संसाधनों पर मुसलमानों का पहला हक बताते हैं। इमाम बुखारी जैसे लोग राष्ट्र-राज्य को धौंस देते हैं। राजनीति एकतरफा अल्पसंख्यकवादी है। केंद्रीय मंत्री बांग्लादेशी घुसपैठियों को भी भारतीय नागरिक बनाने की मांग करते हैं। आतंकवाद राष्ट्र-राज्य से युद्ध है, लेकिन राजनीति आतंकवाद पर नरम है। भारत के हजारों निर्दोष जन आतंकी घटनाओं में मारे गए, सुरक्षा बल के हजारों जवान शहीद हुए, बावजूद इसके कोई भी आतंकी प्रज्ञा जैसे ढेर सारे नार्को परीक्षणों से नहीं जांचा गया। प्रज्ञा सिंह और अभिनव भारत कहीं तपते हिंदू मन के लावे का धूम्र ज्योति तो नहीं हैं? हिंदुओं की एक संख्या को प्रज्ञा सिंह के कथित कृत्य पर कोई मलाल नहीं है। यह खतरनाक स्थिति है। देश के प्रत्येक हिंदू को ऐसे किसी कृत्य पर मलाल होना चाहिए, लेकिन मध्यकालीन इस्लामी बर्बरता और स्वतंत्र भारत की मुस्लिम परस्त राजनीति ने हिंदू मन को घायल किया है। प्रज्ञा मामले ने नई चोट दी है। राष्ट्रभक्त बहुमत इस घटना से आहत है। आतंकवाद इस राष्ट्र की मुख्यधारा नहीं है। हिंदुओं ने कभी भी किसी कौम या देश पर आक्रमण नहीं किया। हिंदू विश्व की प्राचीनतम संस्कृति, दर्शन और सभ्यता के विनम्र उत्तराधिकारी हैं। वे देश के प्रत्येक नागरिक को भारत माता का पुत्र जानते-मानते हैं। वे आतंकवादी नहीं हो सकते। कृपया उन्हें और जलील न कीजिए। (लेखक उप्र सरकार के पूर्व मंत्री हैं)hindu tigerhttp://www.blogger.com/profile/06085116912025834954noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9163350041696449025.post-83823451743012508592008-11-11T22:30:00.000-08:002008-11-11T22:32:02.923-08:00साध्वी प्रज्ञा के समर्थन मे बाबा रामदेव<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEghCHKZQ52Dla6Y014Y71_p-bIlggziVE9IwM28U1Isl7h3CtbsKs9aDcTZ7X0psjJgUv-XKkW_jJ0TPYnpAp5AYxjP3EP9jGDEQyNYzQ5MiLVKFeK01rJvwOuSWmSOhVgIAJX3s3d4A_c/s1600-h/baba_ramdev.jpg"><img style="margin: 0pt 10px 10px 0pt; float: left; cursor: pointer; width: 200px; height: 200px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEghCHKZQ52Dla6Y014Y71_p-bIlggziVE9IwM28U1Isl7h3CtbsKs9aDcTZ7X0psjJgUv-XKkW_jJ0TPYnpAp5AYxjP3EP9jGDEQyNYzQ5MiLVKFeK01rJvwOuSWmSOhVgIAJX3s3d4A_c/s400/baba_ramdev.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5267655017689489810" border="0" /></a><br />मालेगांव बम विस्फोट की आरोपी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के पक्ष में आते हुए योग गुरू स्वामी रामदेव ने आज कहा कि पूछताछ के नाम पर उन्हें यातना देना और अपमानित करना ठीक नहीं है। स्वामी रामदेव ने एक संवाददाता सम्मेलन में पत्रकारों द्वारा पूछे गये प्रश्नों के जवाब में कहा कि हालांकि इस मामले की जांच चल रही है फिर भी वह कहना चाहेंगे कि साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का चार बार नार्को परीक्षण कराया गया है फिर भी उसमें कुछ नहीं निकलना मामले को संदिग्ध बनाता है। लगता है कि अपराध में उनकी संलिप्तता नहीं थी। <p> उन्होंने आक्रोशित लहजे में कहा कि अनेक राजनेता अपराध में लिप्त पाये गये हैं फिर उनका नार्को परीक्षण क्यों नहीं कराया गया। उन्होंने कहा कि इस मामले में जल्दबाजी करना ठीक नहीं है। उन्होंने रोष व्यक्त किया कि पूर्व में श्रृंगेरी के शंकराचार्य को भी इसी प्रकार अपमानित किया गया था। उन्होंने कहा कि मुस्लिम आतंकवाद फिर हिन्दू आतंकवाद और अब राजनीतिक आतंकवाद आने वाला है जिससे लोगों को सावधान रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि राजनेता ही अपराधियों को संरक्षण देकर राजनीति को गंदा कर रहे है तथा आतंकवाद को बढावा दे रहे है।</p>hindu tigerhttp://www.blogger.com/profile/06085116912025834954noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9163350041696449025.post-38054143718545973532008-11-11T22:28:00.000-08:002008-11-11T22:30:00.032-08:00दम है तो गिरफ्तार करो :योगीमालेगांव बम धमाके मे गोरखपुर के एक जंनप्रतिनिधि का नाम आने की चर्चा पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भाजपा सांसद आदित्यनाथ ने चुनौती दी कि अगर एटीएस मे दम है तो वह उन्हे गिरफ्तार करके दिखाए। पत्रकारों से बातचीत मे कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को आतंकवादी संगठन घोषित करने तथा मुस्लिम संगठनों को उदार बताने के उद्देश्य से एक खतरनाक षडयंत्र रचा जा रहा है। <p>36 वर्षीय आदित्यनाथ ने एटीएस को सलाह दी है कि वह दूसरों के इशारों पर कार्रवाई न करे। उन्होंने साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के नार्को परीक्षण पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि इसके पहले हुए बम विस्फोटों में गिरफ्तार इस्लामी आतंकवादियों का नार्को परीक्षण क्यों नहीं किया गया।आदित्यनाथ का यह बयान तब आया है, जब एटीएस ने मालेगांव मामले में एक बड़े नेता से पूछताछ तथा इसमें उत्तरप्रदेश सरकार से सहयोग की इजाजत के लिए सोमवार को मुंबई की एक अदालत में आवेदन किया। </p><p>हालांकि नेता के नाम की घोषणा किए बगैर ही एटीएस ने फर्रुखाबाद व पूर्वी उत्तरप्रदेश में सीधे तौर पर अभियान चला कर मालेगांव विस्फोट मामले में महत्वपूर्ण सूराग हासिल किए हैं। पुलिस अधिकारियों के मुताबिक मालेगांव मामले में लेफ्टिनेंट कर्नल पीसी पुरोहित की गिरफ्तारी के बाद से ही लगातार नए-नए सुराग मिल रहे हैं। इनमें से कुछ सुराग योगी आदित्यनाथ की ओर इशारा करते हैं। </p><p>अपनी हिंदुत्ववादी राजनीति के लिए विख्यात आदित्यनाथ पूर्वी उत्तरप्रदेश में भाजपा के मजबूत स्तंभ हैं। आदित्यनाथ ने उड़ीसा में विश्व हिंदू परिषद नेता स्वामी लक्ष्मणानंद की हत्या के बाद चर्चो पर किए गए हमलों को भी जायज ठहराया था। इतना ही नहीं आदित्यनाथ ने वर्ष 2005 में उत्तरप्रदेश के एटा जिले में 1,800 ईसाइयों की हिंदू धर्म में वापसी को लेकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।</p><p>साभार <a href="http://lokmanch.com"><span>लोकमंच</span></a><br /></p>hindu tigerhttp://www.blogger.com/profile/06085116912025834954noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9163350041696449025.post-14161525438768749182008-11-11T22:25:00.000-08:002008-11-11T22:27:54.746-08:00हिन्दू उग्रवादी बना तो विश्वयुद्ध तय : निश्चलानन्दपुरी पीठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानन्द ने कहा है कि अगर हिन्दू उग्रवादी बन गया तो तीसरा विश्व युद्ध तय समझिए। मै पिछले 17 सालो से यह कहता आ रहा हू कि हिन्दुओ को इतना मजबूर नही करना चाहिए कि एक दिन वे हथियार उठानो को बाध्य हो जाये। आज विदेशी षडयंत्र इस गहराई तक फैल चुका है कि हिन्दुओ के गंगा, रामसेतु और राम मन्दिर जसे मानविन्दुओ को अपमानित करने के लिए इस देश मे हिन्दू ही विदेशी एजेण्ट बन कर सामने खडा हो गया है। <p> हिन्दू हितो के रक्षा के लिए अपने वेबाक टिप्पणी के लिए लोकप्रिय पीठाधीश्वर ने कहा कि कुछ गठजोड विदेशी ताकतो की साजिश से हिन्दुओ के आस्था केन्द्रो पर लगातार हमलो के माध्यम से यह माहौल बना रहे है कि हिन्दू उग्रवाद का मार्ग अपना ले. शंकराचार्य ने कहा कि ऐसे ही हालात रहे तो संघ विहिप, बजरंग दल हो ना हो एक लाख मे एक हिन्दू तो ऐसा होगा ही जो राष्ट्र और धर्म की रक्षा के लिए हथियार उठा लेगा। </p><p>साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के माम्ले मे उन्होने कहा कि न तो उनके घर से कोई आपत्तिजनक समान मिला, न जांच मे उनसे कोई जानकारी मिली फिर भी उनको घोर प्रताडना दी जा रही है, जो दुखद है जबकि संसद पर हमला करने वाले जेल्ओ मे सजा काट रहे है। शंकराचार्य ने कहा कि पहले तो उग्रवाद की परिभाषा तय होनी चहिए क्योकि आज इस देश की आजादी के लिए हथियार उठाने वाले हमारे कांतिकारियो को ही उग्रवादी कहा जाने लगा है। हमारे देवी देवता राम, कृष्ण,काली, दुर्गा सबने शस्त्रो से ही दुष्टो का सन्हार किया और उनके हाथो मे हथियार रहते है। अब अगर इनको भी उग्रवादीमाना गया तो फिर मुझे अपने आप को उग्रवादी मानने मे आपत्ति नही होगी। <br /></p><p>साभार <a href="http://lokmanch.com"><span>लोकमंच</span></a><br /></p>hindu tigerhttp://www.blogger.com/profile/06085116912025834954noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9163350041696449025.post-9852415941952489072008-11-10T02:59:00.000-08:002008-11-10T03:25:52.094-08:00मालेगांव ब्लास्ट के आरोपियों मकोका<span style="font-size:100%;"> सीबीआई का मानना है कि मालेगांव और नांदेड़ ब्लास्ट का आपस में कोई संबंध जरूर है। 2001 में नागपुर के भोंसला मिल्रिटी स्कूल में एक साथ 54 लोगों ने हथियार व विस्फोटकों की ट्रेनिंग ली थी। इनमें से कुछ के दोनों धमाकों में हाथ होने की आशंका जताई जा रही है। </span> <p><span style="font-size:100%;">इन सभी के नाम मालेगांव मामले में गिरफ्तार ले. कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित के लैपटॉप में दर्ज हैं। एटीएस को इस लैपटॉप की शिद्दत से तलाश है। एटीएस ब्लास्ट के सिलसिले में अब तक गिरफ्तार नौ आरोपियों पर महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के तहत कार्रवाई पर विचार कर रही है। </span></p> <p><span style="font-size:100%;"> ऐसा हुआ तो आरोपियों को मौजूदा 90 दिन की बजाय 180 दिन तक हिरासत में रखने की अनुमति मिल जाएगी, साथ ही उन्हें कम से कम पांच साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा की सिफारिश भी की जा सकेगी। </span></p> <p><span style="font-size:100%;">सीबीआई करेगी पूछताछ : </span></p> <p><span style="font-size:100%;">सीबीआई के निदेशक अश्विनी कुमार ने रविवार को नई दिल्ली में कहा कि नांदेड़ और मालेगांव ब्लास्ट के बीच संबंध की जांच की जा रही है। जरूरत पड़ी तो एटीएस द्वारा मालेगांव मामले में गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ की जाएगी। सूत्रों के अनुसार, मालेगांव मामले के कुछ आरोपियों ने नांदेड़ ब्लास्ट के आरोपियों से संपर्क की बात मानी है। </span></p> <p><span style="font-size:100%;">क्या हुआ था ट्रेनिंग कैंप में : </span></p> <p><span style="font-size:100%;">भोंसला मिल्रिटी स्कूल के निदेशक सुरेश जोगलेकर का कहना है कि उन्होंने स्कूल परिसर को बजरंग दल को किराए पर दिया था। जोगलेकर ने कहा कि इसके अलावा उन्हें कोई जानकारी नहीं है। ये बातें उन्होंने सीबीआई को पूछताछ में बता दी हैं। सीबीआई का दावा है कि नांदेड़ ब्लास्ट के आरोपियों को इसी कैंप में ट्रेनिंग दी गई थी। </span></p> <p><span style="font-size:100%;"> क्या है समानता : </span></p> <p><span style="font-size:100%;">1. नांदेड़ और 29 सितंबर के मालेगांव ब्लास्ट में इस्तेमाल किए गए बमों में एक जैसे निशान थे। 2. सीबीआई को अब लग रहा है कि रमजान के दौरान नांदेड़ में एक मस्जिद के बाहर बम रखने वालों और मालेगांव के आरोपियों के बीच कोई नाता है। </span></p> <p><span style="font-size:100%;">3. नांदेड़ में बम साइकिलों में रखे गए थे, वहीं मालेगांव में मोटरसाइकिलों का उपयोग हुआ था<br /></span></p><p><span style="font-size:100%;"><br /></span></p><p><span style="font-size:100%;"><span style="font-size:180%;"> </span><span style="font-size:130%;"><span>तो</span> <span>शुरूवात</span> <span>है</span> <span>आगे</span> <span>आगे</span> <span>देखो</span> <span>होता</span> <span>है</span> <span>क्या</span> -<span>हिंदू</span> <span>टाईगर</span> <span>फोर्स</span> <span>नेपाल</span></span><br /></span></p><p><span style="font-size:100%;">वही </span><span style="font-size:100%;">हिंदू टाईगर फोर्स</span><span style="font-size:100%;"><span></span> के अध्यक्ष राम कुमार का कहना है <span>कि </span></span><span style="font-size:100%;">ये तो शुरूवात है आगे आगे देखो होता है क्या </span><span style="font-size:100%;"><span></span> वे आज नेपाल के विराटनगर में हिंदू सम्मलेन में बोल रहे थे उन्होंने कहा कि पुरे विश्व के मुसलमान हिन्दुओ को मारे तो कोई नही बोलता है जब आज पहली बार ५००० सालो में हिन्दुओ ने पलट कर वार किया है तो सबकी पैंट गीली हो गई है आज तक जितने आतंकवादी पकड़े गए उनमे से १ को भी फाँसी नही हुई जब पहली बार किसी हिंदू ने हमला किया है तो उन पर तरह तरह के आरोप लगाये जा रहे है जब सरकार हिन्दुओ कि रक्षा नही कर सकती है तो अपनी आत्मरक्षा के लिए तो कोई भी हिंदू हथियार उठा लेगा हिंदू अब जाग चुका है अब वो मार नही सहन करेगा बल्कि पलट कर वार जरुर करेगा<br /></span></p><p><span style="font-size:100%;">साभार कांतिपुर टाईम्स<br /></span></p>hindu tigerhttp://www.blogger.com/profile/06085116912025834954noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-9163350041696449025.post-3214347841012360122008-11-10T02:54:00.000-08:002008-11-10T03:24:41.944-08:00कन्नूर में बम ब्लास्ट, दो की मौत<p style="font-style: italic;font-family:courier new;"><span style="font-size:100%;"><b>कन्नूर.</b> कन्नूर के कन्नावाम जिल्ला में एक मंदिर में क्रूड बम विस्फोट में दो लोगों की मौत हो गई, जबकि कुछ लोग घायल भी हुए हैं।</span></p> <p style="font-style: italic;font-family:courier new;"><span style="font-size:100%;">पुलिस सूत्रों के पास से मिली जानकारी के अनुसार कन्नूर से 35 किमी. दूर कन्नावाम जिले में एक मंदिर में आज सुबह 7.30 बजे बम ब्लास्ट हुआ।</span></p> <p style="font-style: italic;font-family:courier new;"><span style="font-size:100%;">जानकारी के अनुसार सीनियर पुलिस अधिकारी घटना स्थल पर पहुंच गए हैं लेकिन घटना की ज्यादा जानकारी के बारे में अभी पूरी जानकारी वहां की पुलिस नहीं दे पा रही है।</span></p>hindu tigerhttp://www.blogger.com/profile/06085116912025834954noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-9163350041696449025.post-29043010770093943722008-11-07T07:18:00.000-08:002008-11-07T07:22:05.390-08:00Systematic Persecution of Religious Minorities in Bangladesh<span style="font-size:85%;"> </span><span style="font-size:85%;"><span style="font-weight: bold;"> Persecution of Religious Minorities in Bangladesh </span><br /> <br /><span style="font-weight: bold;">Introduction</span><br /><br />There may be scepticism whether minorities (Hindus) in Bangladesh are really persecuted in their homeland. The post election situation would unfold the truth. In addition, if we scan the history of the partition of India and the independence of Bangladesh we will get a vivid picture of the reality. The partition of India cost one million lives and displaced fifteen million people. After the partition, India was named as Republic of India whereas Pakistan as Islamic Republic of Pakistan.<br /><br />The birth of Pakistan began with anti-minority stance as is evident from the constitution. In the constitution of Islamic Republic of Pakistan the post of the president was specially reserved for a Muslim with a belief that if a non-Muslim is elected as a president Islam will be endangered.<br />“A person shall not be qualified for election unless he is a Muslim” [Article 32(2)]<br /><br />The division between Muslims and non-Muslims was clearly specified in the constitution,<br /><br />“WHEREIN the Muslims of Pakistan should be enabled individually and collectively to order their lives in accordance with the teachings and requirements of Islam, as set out in the Holy Quran and Sunnah; WHEREIN adequate provision should be made for the minorities freely to profess and practice for religion and develop their culture”<br /><br />On the contrary the Indian constitution provides a different message<br /><br />“WE THE PEOPLE OF INDIA, having solemnly resolved to constitute India into a SOVEREIGN, DEMOCRATIC REPUBLIC,<br />and to see are all its citizens;<br />JUSTICE, Social, economical and political, LIBERTY of thought, expression, belief, faith and worship; EQUALITY of states and opportunity; and to promote among the all; FRETERNITY assuring the dignity of the individual and the unity of the nation”.<br /><br />The following sections would reveal the mechanisms used to persecute the minorities systematically.<br /><br /><span style="font-weight: bold;">Communal violence</span><br /><br />Communal riots in 1950s are established facts and the plight of the affected Hindus are also well known. The Pakistani authority deployed army and paramilitary forces to protect the Hindus. Instead of protecting the Hindus the law enforcement authority carried out large-scale oppression against them particularly against women which is evident from the resignation letter from the then Minister for Law and Parliamentary Affairs, Jogendra Mondol: “The military not only oppressed the people and took away food stuffs forcibly from Hindu houses, but forced Hindus to send their womenfolk at night to the camp to satisfy the carnal desire of the military”. The riots of 1950s caused mass exodus of Hindus from their homeland, which is current Bangladesh. Two and half million Hindus left their homeland during the period of 1950-51. No political party played any role to protect the minorities or to prevent the exodus.<br /><br /><br /><span style="font-weight: bold;">Use of Judiciary for oppression</span><br /><br />The Pakistani government promulgated ‘East Bengal Emergency Requisition of Property Act 13 (1948); East Bengal Evacuees Administration of Immovable Property Act 24 (1951); East Bengal Prevention of Transfer of Property and Removal of Documents and Records Act (1952). In order to increase the oppression another law was instituted, Pakistan Administration of Evacuees Property Act 12 (1957). After the dissolution of the United Front Government Martial Law was declared in 1958. The mass movement against the Martial Law was culminated in 1962. In order to divert the mass movement the government sponsored the horrendous communal riot in 1964. Then ‘East Pakistan Disturbed Persons (Rehabilitation) ordinance 1, 1964 was enacted. Although this law was aimed to rehabilitate the Hindu victims, but in practice it was used to persecute the minorities.<br /><br />During the Indo-Pak war, 1965 (6 September), ‘Defence of Pakistan Ordinance No. 23’, 6 September 1965 was instituted. Under this ordinance the historical BLACK LAW ‘Enemy Property Custody and Registration Order, 1965’ commonly known as ‘Enemy Property Act’ was promulgated.<br /><br />The unflinching love of the minorities to their motherland and their patriotism inspired them to take part in the liberation war of Bangladesh. The minorities cherished hopes for fair treatment and equal right in an independent Bangladesh as her constitution guarantees. On 10 April 1971, Bangladesh Government at Mujibnagar declared that all irrelevant Pakistani Acts would be annulled. On 26 March 1972 Bangladesh Vesting of Property and estates, Presidential Ordinance No. 29 was enforced. Though ‘Enemy Property (Continuance of Emergency Provisions (Repeal) Act 45’ was enforced in 1974, ‘Vested and Non-resident Property (Administration) Act 46, 1974 was enacted. In essence, ‘Enemy Property Act’ was abrogated through Act 45 and reinstituted through Act 46. The expectation of the minorities was a mere illusion.<br /><br />In 1976 Ziaur Rahman abrogated the ‘Vested and Non-resident Property (Administration) Act 46’ and instituted No. 92 Ordinance. Alongside Act 45 ‘Enemy Property (Continuance of Emergency Provisions) Repeal Act’ was amended and the preventive ‘Enemy Property (Continuance of Emergency) Provisions Repeal (Amendment) Ordinance (No. 93) 196’ was enforced retrospectively from 23 March 1974.Through this Ordinance (No. 93) Government took the sole authority to control and sell the so called vested property. This shows Ziaur Rahman moved one step ahead to oppress the Hindus by violating Hindu Law in terms of ownership of the property. It is necessary to mention that it was Ziaur Rhaman who changed the four basic principles of the constitution of Bangladesh on 23 April 1977 which was subsequently instituted as 5th amendment. He was the architect of installing Pakistani tradition in the state machinery of an independent Bangladesh by depriving her citizens from their fundamental rights. Furthermore, Ziaur Rahman ordered the administration to find out more enemy property through a circular dated 23 May 1977. This circular intensified harassment and oppression on Hindus.<br /><br />Another army President General Ershad just followed his predecessor’s foot marks. On 31 July he ordered to withhold the official circular of 23 May 1977. On the contrary, he declared Islam as the state religion through the 8th amendment, which was used as a licence to persecute the minorities. Unfortunately no repercussion was evident among the so called progressive politicians considering political gains and losses.<br /><br />Khaleda Zia’s Government added momentum to the process of oppression on the Hindus through a circular (4 November 1993) in the name of validation of the list of enemy property.<br /><br />During the last phase of the Awami League Government this black law was abrogated. However, practical implementation of the abrogation is a long way to go.<br /><br /><span style="font-weight: bold;">Hindu Population</span><br /><br />Variation of the Hindu population with time as presented in Table 1 raises many questions.<br /><br />Table 1: Hindu population at different times<br /><br /><br />Year Muslim (%) Hindu (%)<br /><br />1951 76.9 23.1<br /><br />1961 80.4 19.6<br /><br />1974 85.4 14.6<br /><br />1981 86.6 13.4<br /><br />1991 87.4 12.6<br /><br /><br />During the last fifty years the average increase in population in the subcontinent is approximately three times. Taking this into account the present Hindu population in Bangladesh should be 40 million. Therefore, the statistics of population suggests that about 25 million Hindus are missing, which raises more questions than answers.<br /><br /><br /><span style="font-weight: bold;">Representation of Minorities</span><br /><br />The representation of the minorities in various sectors demonstrate how the minorities are treated in public representations, jobs and education.<br /><br />Members of the Parliament<br /><br />Table 2: Representation of Hindus in the parliament<br /><br />Year Total Hindu<br /><br />1954 309 72<br /><br />1973 315 12<br /><br />1979 8 0<br /><br />1988 4 0<br /><br />1991 11 0<br /><br />1996 9 (?)<br /><br />2001 3 0<br /><br /><br />Based on the percentage of Hindu population the present number of the Hindu parliamentarians should be about 40.<br /><br /><span style="font-style: italic; font-weight: bold;">Defence</span><br /><br />The representation of Hindus in defence including army, border security and police services is appalling as apparent from the following data:<br /><br /><span style="font-style: italic; font-weight: bold;">Army</span><br />Table 3: Representation of Hindus in army<br /><br />Position Total Hindu (%)<br />Jawan 80,000 0.63<br /><br />Second LT/LT 900 0.33<br /><br />Captain 1,300 0.62<br /><br />Major 1,000 4.0<br /><br />Lt Col 450 1.7<br /><br />Colonel 70 1.4<br /><br />Brigadier 65 (?)<br /><br />Maj General 22 4.5<br /><br /><br /><span style="font-style: italic; font-weight: bold;">Air Force and Navy</span><br /><br />Essentially the Hindu representation in these two services is almost nil.<br /><br /><span style="font-weight: bold; font-style: italic;">Border Security Personnel</span><br /><br />The Hindu representation in Border Security Service is about 0.75% .<br /><br /><span style="font-weight: bold; font-style: italic;">Police</span><br /><br />Table 4: Representation of Hindus in police<br /><br />Position Total Hindu (%)<br /><br />Ordinary 80,000 2.5%<br /><br />ASP/Asst Commissioner 635 6.3<br /><br />DSP/Addl SP 87 2.3<br /><br />SP/AIG 123 8.1<br /><br />DIG 18 5.5<br /><br />Add/IG 6 0<br /><br />IG 1 0<br /><br /><br />The representation of the minority is no way better in the public service.<br /><br /><span style="font-weight: bold;">Education and other sectors</span><br /><br />There was only one Hindu Vice Chancellor in the history of Bangladesh. Ironically, he was removed unlawfully from his position because of the religious denomination. Apart from the Vice Chancellor, the government also appoints the Pro-Vice Chancellor of a university. Not a single Hindu was appointed in this position although there are many distinguished Hindu academics. Discrimination is prevalent in awarding scholarships and enrolment in medical institutions.<br /><br />Millions of dollars are spent for the development of Madrassas and there is Islamic University. However, Sanskrit ‘Tols’ and ‘Pali Institutions’ only exist in name. Religious teachers of the minority community are discriminated in terms of salary and other benefits.<br /><br />Bangladesh Government spends huge amount of money for the development of particular religious places whereas such development of Hindu and Buddhist temples and Christian churches is denied. In almost every government, semi-government, autonomous and academic institution there is mosque for prayer but the minorities are not fortunate to have their prayer house in such institutions.<br /><br />In the radio and television there is regular recitation from a particular holy book while recitation from the minority religious book is quite casual. The festivals of a particular religion are observed at a national level whereas other religious festivals are observed unceremoniously.<br /><br />Savar mausoleum is a symbol of respect for those who sacrificed their lives for the independence of Bangladesh. It is a hard fact that people of all religions took part in the country’s liberation war. Regrettably a mosque was built at the memorial denying the recognition of the sacrifices of the religious minorities.<br /><br />In general, the currency contains the portraits or images of famous people or places. In the Bagladeshi currency there are images of various mosques but no religious places of the minorities receive any importance.<br /><br /><span style="font-weight: bold;">Conclusion</span><br /><br />The aforementioned facts strongly suggest that there has been a slow motion ethnic cleansing in Bangladesh. The change in power on 01 October 2001 has accelerated the cleansing process.<br /><br />The recent atrocities and repression on the minorities raise the question of their survival in their homeland. The extinction of religious minorities can only be prevented if the following steps are implemented:<br /><br />· Separate state from the religion<br />· Reinstate secularism in the constitution of Bangladesh<br />· Establish a truly independent judiciary<br />· Abolish all sorts of discriminatory laws and policies.<br /><br />The recent government sponsored atrocities toll the bells for exposing those elements who, by their acts of commission and omission, are pushing the nation into the dark dungeons from which there can be no retrieval.<br /><br /><br /><span style="font-weight: bold;">Bibliography</span><br /><br />Kankar Sinha (1997). Communalism and Minority Crisis. Dhaka: Anannya Publishers<br /><br />Bhowmik N and Dhar B (1997). Anjali. Dhaka: Dhaka Mahanagar Puja Committee<br /><br />Dutta C R (1993). The Disgrace<br /></span><div style="text-align: left;"> </div><div style="text-align: left;" class="post-footer"> <div class="post-footer-line post-footer-line-1"><span style="font-size:85%;"><span class="post-author vcard"><span class="fn"><br /></span> </span><span class="post-comment-link"> </span><span class="post-icons"> </span></span> </div> </div><div style="text-align: left;"> </div><div style="text-align: left;" class="comments" id="comments"> <span style="font-size:85%;"><a name="comments"></a></span></div><div style="text-align: left;"><br /></div><h1 style="text-align: left;" class="title"><a href="http://hindubd.blogspot.com/"><span style="font-size:85%;">Hindus of Bangladesh</span></a></h1>hindu tigerhttp://www.blogger.com/profile/06085116912025834954noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9163350041696449025.post-50934851944609722002008-11-07T06:00:00.000-08:002008-11-07T06:02:44.482-08:00आरएसएस: साध्वी प्रज्ञा के समर्थन मेंकुछ दिन पूर्व आरएसएस साध्वी प्रज्ञा से पल्ला झाड़ता नजर आ रहा था लेकिन अब खुलकर प्रज्ञा के समर्थन में आ गया है। आरएसएस के संगठन 'देखो और इंतजार करो' के बजाय यूपीए को घेरने में जुट गए हैं और इसके लिए जनमत तैयार करने की रणनीति बनाई जा रही है। इसके तहत साध्वी प्रज्ञा को कानूनी सुविधा मुहैया कराने के साथ ही उनके पक्ष में जन जागरण अभियान चलाने की भी योजना है। <p>बताया जा रहा है कि आरएसएस के सर संघचालक के.एस. सुदर्शन के नेतृत्व में हुई बैठक में बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह और लालकृष्ण आडवाणी को भी झंडेवाला बुलाया गया था। बैठक के बाद राजनाथ सिंह ने कहा जब तक पर्याप्त सबूत सामने नहीं आते, तब तक साध्वी प्रज्ञा को आतंकवादी मानने का कोई आधार नहीं दिखता। राजनाथ ने कहा कि कांग्रेस हिंदू आतंकवाद के मुद्दे पिछले दिनों देश में हुई आतंकवाद की घटनाओं पर पर्दा डालने के लिए तूल दे रही है। उन्होंने कहा कि जो लोग सांस्कृतिक राष्ट्रवाद में विश्वास करते हैं, वे आतंकवादी हो ही नहीं सकते। राम माधव ने भी कहा कि पूरे प्रकरण से लगता है कि हिंदू संगठनों और सेना को बदनाम करने के लिए साध्वी प्रज्ञा को मोहरा बनाया गया। इस पूरे प्रकरण से हिंदू समाज आहत हुआ। यह पूछने पर कि संघ इस मामले में कोई आंदोलन चलाएगा? माधव ने कहा, जनता इस मामले का उचित समय पर जवाब देगी। </p>Anonymousnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-9163350041696449025.post-51630891886354196402008-11-07T05:29:00.000-08:002008-11-07T05:37:04.573-08:00साध्वी प्रज्ञासिंह की जांच और मानवाधिकार आयोग<span style="color: rgb(0, 0, 0);font-size:100%;" ><span style="font-family:webdings;">मालेगाँव बम धमाकों की आरोपी साध्वी प्रज्ञासिंह ठाकुर का कालीना विश्वविद्यालय के फॉरेंसिक साइंस लैबोरेटरी में वैज्ञानिक परीक्षण किया गया। पुलिस का आतंकवाद निरोधक दस्ता (एटीएस) साध्वी का इससे पहले किए गए ब्रेन मैपिंग परीक्षणों से खुश नहीं था। फॉरेंसिक साइंस लैबोरेट्री के अधिकारियों ने साध्वी का हाल ही में किए गए परीक्षण रिपोर्ट में कहा था कि यदि साध्वी का दोबारा परीक्षण किया जाए तो विस्फोट मामले में कुछ ठोस बातें सामने आ सकती हैं।</span></span><br /><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-size:100%;" >नासिक अदालत से स्वीकृति लेने के बाद साध्वी को अपराह्न फॉरेंसिक साइंस लैबोरेटरी में वैज्ञानिक परीक्षण के लिए लाया गया। अदालत ने कल गिरफ्तार किए गए और 15 नवंबर तक के लिए पुलिस रिमांड पर भेजे गए कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित का वैज्ञानिक परीक्षण करने की स्वीकृति दे दी है।एटीएस ने साध्वी के अन्य सहयोगी शामलाल साहू और शिवनारायणसिंह की वैज्ञानिक जाँच के लिए अदालत में याचिका दाखिल की है, जो अभी तक लंबित है। मालेगाँव विस्फोट मामले में गिरफ्तार साध्वी प्रज्ञासिंह ठाकुर अपने मूलभूत अधिकारों के उल्लंघन के मामले को लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से गुहार लगाएँगी।</span><br /><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-size:100%;" ><span style="font-family:webdings;">इस बीच साध्वी की वकील गणेश सोवानी ने कहा हम लोग इस मामले में निश्चित तौर पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में शिकायत दर्ज कराएँगे। अभी तक हमें आवश्यक दस्तावेज नहीं मिले हैं।पुलिस ने बताया प्रज्ञा की बहन प्रतिभा झा ने आतंकवाद निरोधक दस्ते के कार्यालय का दौरा किया था, लेकिन बहन से मिलने की अनुमति उन्हें नहीं दी गई। प्रतिभा बुधवार को भी उनसे मिलने में सफल नहीं हो सकी थी। </span></span><br /><span style="color: rgb(0, 0, 0);font-size:100%;" ><span style="font-family:webdings;"> </span></span>hindu tigerhttp://www.blogger.com/profile/06085116912025834954noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-9163350041696449025.post-9576843281730738532008-11-07T05:06:00.001-08:002008-11-07T05:09:05.915-08:00अमंगल की आहटअमंगल की आहट मालेगांव बम धमाकों के सिलसिले में साध्वी प्रज्ञा तथा कुछ अन्य हिंदुओं की गिरफ्तारी पर मचे शोर-शराबे के बीच हमारे समक्ष यह सवाल उभरा है कि क्या हिंदुओं के भीतर भी आतंकवाद का कीड़ा अंतत: रेंग गया अथवा यह अल्पसंख्यक वोट बैंक को अपने पाले में खींचने के लिए संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की एक और साजिश है? उम्मीद है कि जिन लोगों के पास इस मामले की जांच का जिम्मा है वे उस हायतौबा से प्रभावित हुए बिना अपना कार्य करेंगे जो इस प्रकार की परिस्थितियों में संघ परिवार को लेकर छद्म सेकुलर ब्रिगेड की ओर से सुनने को मिलती रही है। जांचकर्ताओं को ऐसे सबूत एकत्र करने होंगे जो न्यायिक समीक्षा के समक्ष टिक सकें और उन लोगों के कामों पर पूरी रोशनी डाल सकें जिन्हें गिरफ्त में लिया गया है और इस पर भी कि किन कारणों से वे आतंकवादी तौर-तरीके अपनाने की ओर उन्मुख हुए। आतंकवाद पर राजनीति ने केंद्र सरकार की विश्वसनीयता को इस हद तक क्षति तक पहुंचाई है कि कोई भी उन सूचनाओं पर भरोसा करने के लिए तैयार नहीं जो इस मामले में सामने लाई गई हैं। जब जांच की संभावित दिशा की शुरुआती खबरें सामने आईं तो पूरे देश के हिंदू यह जानकर सन्न रह गए कि इस समुदाय के कुछ लोग, जिनमें एक साध्वी तथा सेना के कुछ पूर्व व वर्तमान अधिकारी शामिल हैं, महाराष्ट्र के मालेगांव तथा गुजरात के मोदसा में हुए बम धमाकों के सिलसिले में जांच के घेरे में हैं। यह शुरुआती आश्चर्य अब संदेह में बदलने लगा है। जो लोग इस मामले में सरकार के रुख को स्वीकार करने के लिए तैयार थे, अब अचानक अनेक कारणों से घटने लगे हैं। इसका मुख्य कारण सत्ताधारी गठबंधन के इरादों पर घटता विश्वास तथा देश को एक व सुरक्षित बनाए रखने में उसकी असफलता है। संप्रग की विश्वसनीयता पिछले छह माह में एकदम से घटी है। इसके कारणों को जानना कठिन नहीं है। सबसे पहला है इसकी अक्षमता। दूसरा कारण है उन लोगों के संदिग्ध इरादे जो आज हम पर शासन कर रहे हैं। कानून एवं व्यवस्था तथा आर्थिक मोर्चे पर असफलता अक्षमता के क्षेत्र में आती है। जो लोग सत्ता संभाले हुए हैं उनका रिकार्ड बेहद निराशाजनक है। दूसरा कारण कहीं अधिक खतरनाक है। यह हमारे सत्ता संचालकों की हानिकारक प्रकृति सामने लाता है। यह इसलिए ज्यादा खतरनाक है, क्योंकि यह उस सबको तबाह कर सकता है जो हमने पिछले साठ वर्षो में संजोया है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सरकार के भीतर की इस खतरनाक सोच का सबसे पहले संकेत तब दिया था जब उन्होंने यह स्तब्धकारी घोषणा की थी कि देश के संसाधनों पर पहला हक मुस्लिमों का है। मैंने इससे अधिक निर्रथक बयान कभी नहीं सुना। यदि इस टिप्पणी के बाद भी मनमोहन सिंह अपने पद पर बने रह सके तो सिर्फ इसलिए कि हिंदू समाज में लोकतंत्र और पंथनिरपेक्षता की जड़ें बहुत गहरी हैं। यह चिंता की बात है कि हिंदू समाज की इस विशेषता पर आंच आने लगी है। मनमोहन सिंह ने जिस एजेंडे की शुरुआत की उसे उनके साथियों ने खूब आगे बढ़ाया। हिंदुओं के मन-मस्तिष्क में आ रहे परिवर्तन की यही मुख्य वजह है। सत्ताधारी गठबंधन के इस एजेंडे को राजेन्द्र सच्चर समिति की रिपोर्ट से और अधिक आगे तक ले जाया गया, जो देश में मुस्लिमों की दशा से संबंधित थी। खुद गैर-जिम्मेदार तरीके से काम करने वाली यह समिति सशस्त्र बलों में सांप्रदायिक आधार पर गिनती के पक्ष में थी। समिति ने जो रिपोर्ट पेश की उसमें मुस्लिमों की तथाकथित दुर्दशा के लिए हर किसी पर आधारहीन आरोप लगाए गए। तुष्टीकरण के मामले में प्रधानमंत्री के रुख से उत्साहित कैबिनेट के अन्य सदस्य और अधिक आगे बढ़ गए। उन्होंने देश की एकता, सेकुलर ताने-बाने तथा विधि के शासन को कहींअधिक गंभीर क्षति पहुंचाई। जिस अबू बशर को पुलिस ने अहमदाबाद और बेंगलूर बम धमाकों के मास्टरमाइंड के रूप में चिह्नित किया उसके परिजनों के प्रति संवेदना जताने में संप्रग सरकार के मंत्री एक-दूसरे को पीछे छोड़ने की होड़ में जुट गए। अहमदाबाद और बेंगलूर के बम धमाकों में सौ से अधिक लोग मारे गए थे और अनगिनत लोग घायल हुए थे। अबू बशर की पक्षधरता करने वाले मंत्री लालू प्रसाद यादव तथा रामबिलास पासवान ने बाद में जामिया नगर मुठभेड़ पर सवाल उठाने शुरू कर दिए, जिसमें दिल्ली पुलिस के एक बहादुर अधिकारी को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। इन सभी घटनाओं ने हिंदुओं के मन को बहुत अधिक आघात पहुंचाया। यह संभव है कि इन घटनाओं ने बहुसंख्यक समुदाय को हिंसा की ओर मोड़ दिया हो। शायद इसीलिए वे लोकतांत्रिक जीवनशैली से दूर हो रहे हैं। अन्यथा और किस तरह साध्वी प्रज्ञा, जिन्होंने धर्म और अध्यात्म के लिए संन्यास ग्रहण कर लिया तथा देश प्रेम और अनुशासन का प्रतीक माने जाने वाले सैनिकों में से कुछ की आतंकी साजिश में लिप्तता की व्याख्या की जा सकती है? अंत में कुछ बातें लोकतंत्र और उस तत्व की जो भारत और अमेरिका जैसे देशों में लोकतंत्र को टिकाए रखने का आधार है। यह है संविधान। भारत, अमेरिका, सऊदी अरब या पाकिस्तान या अन्य कोई भी देश हो, उसका संविधान समाज में बहुमत की इच्छा को परिलक्षित करता है। हर तरह की समानता की गारंटी देने वाले भारत और अमेरिका सरीखे लोकतांत्रिक संविधान वास्तव में बहुसंख्यकों द्वारा अल्पसंख्यकों को दिया गया उपहार है। यदि भारत के हिंदू पाकिस्तान के मुस्लिमों के समान संकीर्ण मानसिकता वाले होते तो हमें ऐसा संविधान नहीं मिला होता जो मानवता द्वारा व्यक्त किए गए अनेक महान विचारों को अपने अंदर समेटे हुए है। चाहे भारत हो या अमेरिका अथवा कोई अन्य देश, बहुसांस्कृतिक समाज में इस प्रकार के संविधान का टिके रहना इस पर निर्भर करता है कि उस देश की राजसत्ता की प्रकृति क्या है? वह संविधान को किस रूप में इस्तेमाल करती है? राजसत्ता को बहुमत का विश्वास हासिल होना चाहिए। जब बहुमत राज्य में विश्वास खो देता है तो लोकतंत्र अव्यवहारिक तथा निष्कि्रय हो जाता है। यदि ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई तो एकदम ढांचागत परिवर्तन उत्पन्न हो सकते हैं और इसका पहला निशाना संविधान तथा लोकतंत्र ही बनेगा। साध्वी की गिरफ्तारी तथा सेना के कुछ पूर्व तथा वर्तमान सदस्यों की इस साजिश में संभावित संलिप्तता की बातें इस बात का पर्याप्त संकेत दे रही हैं कि राज्य पर बहुमत का विश्वास घटने लगा है। यह चिंताजनक स्थिति है, जिसकी अनदेखी नहींकी जानी चाहिए। इसमें अधिक संदेह नहीं कि इस स्थितिके लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तथा उनके कुछ गैर-जिम्मेदार सहयोगी जिम्मेदार हैं, जो आतंकियों के परिजनों के प्रति तो संवेदना प्रकट करते हैं, लेकिन आतंक से प्रभावित लोगों के परिजनों के प्रति नहीं। यदि शांति प्रिय हिंदू समाज में से कोई आतंकी कृत्यों की ओर मुड़ा है तो हमें आत्मचिंतन करना होगा। इसके पहले कि सामाजिक सुनामी लोकतंत्र,पंथनिरपेक्षता तथा उदारवाद के रूप में हमारे उन मूल्यों को तबाह कर दे जिन्हें हम सबसे अधिक सम्मान देते हैं, हमें सावधान होना होगा।<br />by <a href="http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=2&edition=2008-11-07&pageno=8">jagran </a>hindu tigerhttp://www.blogger.com/profile/06085116912025834954noreply@blogger.com0