सोमवार, 29 दिसंबर 2008

सहमे हुए हैं बांग्लादेश के हिंदू

बांग्लादेश की राजधानी का पुराना इलाका बिलकुल दिल्ली के चाँदनी चौक जैसा दिखाई देता है। वही सँकरी गलियाँ और छोटी-छोटी दुकानें। यहाँ के ताते बाजार और शाखारी बाजार में कई हिंदू रहते हैं। जगह-जगह हिंदू देवी-देवताओं की तस्वीरें दिख जाती हैं। यहाँ के जगन्नाथ मंदिर के कर्ता-धर्ता और पेशे से सुनार बाबुलचंद्र दास का कहना है कि अल्पसंख्यक, खासकर हिंदुओं की स्थिति यहाँ बहुत खराब है।

उन्होंने कहा कि पिछले चुनावों के बाद भड़की हिंसा को हम नहीं भूल सकते। हमें आज भी डर है कि हम वोट डालने जाएँ या नहीं, क्योंकि बाद में हम पर हमले भी हो सकते हैं। हमें कहा जाता है कि आप हिंदू हो, भारत चले जाओ। हमने भी 1971 की आजादी के आंदोलन में हिस्सा लिया और अब हमारे पास कोई अधिकार नहीं हैं।

नजारा अलग है : लेकिन ढाका के शाखारी बाजार का नजारा एकदम अलग है। यहाँ लगभग पूरी आबादी ही हिंदुओं की है। इक्का-दुक्का मुसलमान यहाँ दिख जाएँगे।

यहाँ पर होटल चला रहे दीपक नाग कहते हैं कि यहाँ कोई समस्या नहीं है, क्योंकि यहाँ हम मजबूत स्थिति में हैं। हाँ, गाँवों में हिंदू उत्पीड़न झेलते हैं। ढाका के इस बाजार में हमें कोई छू नहीं सकता।

शाखरी बाजार बाकी देश से काफी अलग है। बांग्लादेश में करीब 8-10 प्रतिशत हिंदू हैं, लेकिन सामाजिक कार्यकर्ताओ की मानें तो ये संख्या काफी ज्यादा है और सरकारी आँकड़े पूरी सच्चाई बयाँ नहीं करते।

लेखक, पत्रकार और फिल्मकार शहरयार कबीर कहते हैं खेद की बात है कि बांग्लादेश में हिंदू हाशिए पर हैं। उनका संसद में, प्रशासन में सही प्रतिनिधित्व नहीं है।

इस्लामी राष्ट्र : वे कहते हैं संविधान को जिया उर रहमान ने धर्मनिरपेक्ष से बदलकर इस्लामी रूप दे दिया था और फिर जनरल इरशाद ने इस्लाम को राष्ट्रधर्म का दर्जा दे दिया।

इसके बाद हिंदू, बौद्ध, ईसाई सब दूसरे दर्जे के नागरिक हो गए। हिंदुओं से भेदभाव और उनका दमन जारी है। वर्ष 2001 के चुनाव के बाद हुई हिंसा आज भी दहशत फैला रही है।

कबीर के अनुसार देश में भय का माहौल है और जैसे-जैसे इस्लामी चरमपंथ उभर रहा है, धर्मनिरपेक्ष ताकतों की जगह कम होती जा रही है। हालाँकि यहाँ के हिंदू स्वयं को अल्पसंख्यक नहीं मानते और अपने को मुख्यधारा के हिस्से के रूप में देखते हैं।

काजोल देवनाथ हिंदू बौद्ध ईसाई एकता परिषद से जुड़े हैं। वे बताते हैं जब पूर्वी पाकिस्तान था, राष्ट्रीय असेंबली की 309 में से 72 सीटें अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित थीं।

उनका कहना है अल्पसंख्यकों ने अलग सीटों के बजाय सम्मिलित सीटों की माँग की, पर आज हालत यह है कि अवामी लीग ने 15 करीब तो बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने केवल चार से पाँच अल्पसंख्यक उम्मीदवार खड़े किए हैं।

देबनाथ के मुताबिक जिस भी हिंदू से बात करते हैं, वे 2001 के चुनावों के बाद हुई हिंसा की याद से सिहर उठता है। शिराजपुर में पूर्णिमा नाम की 15 साल की लड़की से सामूहिक बलात्कार हुआ। बारीसाल, बागेरहाट, मानिकगंज और चिट्टागोंग समेत दक्षिण और उत्तर बांग्लादेश में अत्याचार का दौर चला। घर, मंदिर, धान की फसलें जला दी गईं। ये हिंसा महीनों चली।

भारत का असर : ढाका विश्वविद्यालय के रिटायर्ड प्रोफेसर अजय राय कहते हैं और तो और लड़कियों के साथ बदसलूकी होती है। सिंदूर और बिंदी लगाने पर फिकरे कसे जाते हैं। भारत की घटनाओं का असर भी बांग्लादेश के हिंदू झेलते हैं।

राय का कहना है कि जब भारत में कुछ घटनाएँ होती हैं, जैसे गुजरात या बाबरी मस्जिद विध्वंस, यहाँ प्रतिक्रिया बहुत तीव्र होती है। बाबरी विध्वंस के बाद यहाँ हिंदू पूजा स्थलों पर कई हमले हुए।

अल्पसंख्यकों की जमीन पर कब्जा कर लेने की समस्या लगातार बनी रहती है, क्योंकि वे कमजोर हैं और सरकार और प्रशासन का भी साथ उन्हें नहीं मिलता।

अजय राय एक गैरसरकारी संस्था संपृति मंच के जरिये कानून-व्यवस्था पर नजर रख रहे हैं और अल्पसख्यकों से चुनाव में बेखौफ हिस्सा लेने का आह्वान कर रहे हैं।

साथ ही किसी भी हिंसक घटना या डराने-धमकाने की कोशिश को चुनाव आयोग तक पहुँचा रहे हैं, लेकिन हिंदू समुदाय चुनाव के बाद और सरकार गठन के दौर में संभावित हिंसा से अब भी चिंतित है।

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